
पुरानी चीज़ों को इक दिन वह ख़ाक में मिलाता है
मगर इस ख़ाक से ही फिर नयी दुनिया बनाता है
उसे मीठा बनाकर बाँटता है सारी धरती पर
कि सूरज जितने पानी को समन्दर से उठाता है
उसे ठुकरानी पड़ती है सहर की नींद की लज़्ज़त
वो सबसे पहले उठता है जो औरों को जगाता है
इधर इंसान को उसने ज़मीं पर फूल बख़्शे हैं
इधर वो आसमाँ को भी सितारों से सजाता है
किसी ज़ालिम के पंजों से ये बचकर आया है शायद
तू अपनी छत पे ठहरे पंक्षी को नाहक़ उड़ाता है
न इसको इल्म है उसका न उसकी शक्ल से वाक़िफ़
ख़ुदा के साथ इन्साँ का बहुत दिलचस्प नाता है
puraanii cheezoN ko ik din woh kh.aak meN milaata haiमगर इस ख़ाक से ही फिर नयी दुनिया बनाता है
उसे मीठा बनाकर बाँटता है सारी धरती पर
कि सूरज जितने पानी को समन्दर से उठाता है
उसे ठुकरानी पड़ती है सहर की नींद की लज़्ज़त
वो सबसे पहले उठता है जो औरों को जगाता है
इधर इंसान को उसने ज़मीं पर फूल बख़्शे हैं
इधर वो आसमाँ को भी सितारों से सजाता है
किसी ज़ालिम के पंजों से ये बचकर आया है शायद
तू अपनी छत पे ठहरे पंक्षी को नाहक़ उड़ाता है
न इसको इल्म है उसका न उसकी शक्ल से वाक़िफ़
ख़ुदा के साथ इन्साँ का बहुत दिलचस्प नाता है
magar is kh.aak se hii phir nayii duniya banaata hai
usey meetha banaakar baaNTata hai saari dhartii par
ki sooraj jitney paanii ko samandar se uthaata hai
usey thukraanii paRtii hai saher kii neeNd kii lazzat
woh sabse pahley uthtaa hai jo auroN ko jagaata hai
idhar insaan ko usney zameen par phool bakhshey haiN
idhar wo aasamaaN ko bhii sitaaroN se sajaata hai
kisie zaalim ke panjoN se yeh bachkar aaya hai shaayad
too apnii chhat pe thahrey paNchhii ko naahaq uRaata hai
na isko ilm hai uskaa, na uskii shakl se waaqif
khu.daa ke saath insaaN kaa bahut dilchasp naata hai