रातों में सुनी है मगर देखी तो नहीं एक आह सी आती है, उनकी तो नहींअपना हुनर तराशा है जिनके हुस्न से मेरी इन गजलों में वही अक्स तो नहीं दिल को ये दिलासा है, वो है जमीं पे ये चांद उसी दिलदार का साया तो नहीं जिस अजनबी ने मुझको तलबगार किया है उनसे मेरी इस रूह का कोई रिश्ता तो नहीं
एक आह सी आती है, उनकी तो नहीं
Reviewed by akbar khan
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March 16, 2015
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