कभी रोए तेरे खातिर, कभी चुप हुए तेरे खातिर कभी जलते रहे तो कभी बुझते रहे तेरे खातिरखर्च होने न दिया हंसी को अपने होठों से अपनी खामोशी में सहेजते रहे तेरे खातिर मेरी मंजिल वहीं है जहां पर तुम ठहरी हो हर कदम पे हम मुंतजिर रहे तेरे खातिर हो गया हूं मैं अजनबी सा खुद अपने लिए खो गया हूं न जाने कहां पर तेरे खातिर
कभी रोए तेरे खातिर, कभी चुप हुए तेरे खातिर
Reviewed by akbar khan
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March 16, 2015
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