कुछ कहने और सुनने की आरजू नहीं रही मैं भी मैं कहां रहा, तू भी तू नहीं रही तब हर बात पे होती थी अक्सर ही तकरार अब किसी बात पे प्यार की गुफ्तगू नहीं रही फुरसत ही नहीं मिलती कि तेरी याद में रोऊं मैं तुमको भी मेरे आंसुओं की जूस्तजू नहीं रही तू चाहती कुछ और, मैं सोचता हूं कुछ और किसी आईने में हमारी सूरत हूबहू नहीं रही