तुम्हारी ख्वाहिशें..कहानी भाग २
तुम्हारी अनोखी ख्वाहिशों की लिस्ट में एक और ख्वाहिश थी...जिसे तुम लगभग हर शाम मुझे सुनाती थी. तुम्हें शब्द ईजाद करने की बीमारी
आदत थी. अंग्रेजी के शब्दों के साथ इक्स्पेरिमेंट करना तुम्हारी हॉबी थी.
अंग्रेजी का कोई भी नया शब्द तुम कहीं देख लेती तो उसे सीधा इस्तेमाल कर
लेती थी, अपने खतों में, अपनी डायरी में या जहाँ भी तुम्हारा मन करे
वहाँ... बिना ये जाने कि उस शब्द का अर्थ क्या है. एक दिन तो तुम्हें अजीब
बुखार चढ़ा. अंग्रेजी के शब्दों का अविष्कार करने का बुखार. जाने कहाँ से
तुम्हें एक दिन एक शब्द “Premious” सूझा था, और तुमने मेरी ही डायरी में
अपने इस नए शब्द का इस्तेमाल किया था. “I am premious” तुमने लिखा था. इस
शब्द का क्या अर्थ तुमने बताया था ये सही से याद नहीं. शायद इक्स्ट्रीम्ली
प्रीशअस(Extremely Precious). उस शाम के बाद तुमपर जैसे धुन सवार हो गयी थी
नए, अनोखे और अजीबोगरीब शब्दों का लिस्ट बनाने की. एक दिन मैंने तुमसे यूँ
हीं बातों बातों में कह दिया था कि तुम अपने इन शब्दों का अगर एक पूरी
लिस्ट तैयार करो तो जब तुम्हारी लिस्ट पूरी हो जायेगी, मैं तुम्हारे इजाद
किये शब्दों के लिस्ट को किसी दिन पब्लिश करवा कर एक नायब किताब का रूप दे
दूंगा. ये कह कर मैं तो ये बात भूल भी गया था लेकिन तुम्हारे मन में ये बात
रह गयी थी.
तुमने बाकायदा एक पुराना टाइप राइटर जो तुम्हारे नाना का था उसे झाड़पोंछ कर
निकाला और उसी टाइपराइटर में तुमने टाइप करना शुरू कर दिया था. तुमने
शुरुआत में मुझे कुछ भी नहीं बताया था. तुम मुझे सरप्राइज देना चाहती थी.
करीब दो ढाई महीने बाद जब मैं तुमसे कही उस बात को पूरी तरह भूल चूका था,
तुमने एक शाम पाँच पन्नो के शब्दों की एक लिस्ट थमा दी मेरे हाथों में.
“देखो मैंने लिखना शुरू कर दिया है, अब कुछ महीनो में ये पूरा हो जाएगा तो
फिर इसको छपवाने की जिम्मेदारी तुम्हारी”, तुमने कहा और मैं हैरान सा होकर
तुम्हें देखने लगा था. उसी शाम तुमने अपनी और मेरी डायरी में इस ख्वाहिश को
भी जोड़ा था. लिखा था तुमने.. ‘Fun With Words, By Us’ नाम की किताब पब्लिश
करवाना और उसके नीचे तुमने मुझसे दस्तखत करवाया था. हाँ, ये भी तुम्हारी
आदत थी, डायरी के हर पन्ने पर लिखी ख्वाहिश के नीचे तुम अपने और मेरे
दस्तखत लेती थी, समय और तारीख के साथ.
उस शाम के बाद तुमने सच में वो लिस्ट बनानी शुरू कर दी थी. मुझे ये विश्वास
ही नहीं हो रहा था कि तुमने कितने अच्छे से अपने अजीबोगरीब शब्दों को लिखे
थे. बाकायदा अर्थ समझाया था तुमने, एक्स्प्लनेशन के साथ और उसका प्रयोग
कैसे कर सकते हैं वो भी साथ में लिखा था तुमने. किसी डिक्शनेरी के तर्ज पर.
अपने ईजाद किये शब्दों के साथ साथ तुमने अपने उस लिस्ट में कुछ बेहद
आश्चर्यजनक और अजीबोगरीब अंग्रेजी के शब्द लिखे थे. जैसे एक शब्द मुझे याद
आता है - “Pluviophile” जो तुम खुद के अकसर इस्तेमाल करती थी, जिसका अर्थ
है “वो इंसान जिसे बारिश बहुत पसंद है, और जो बारिश में सुकून और प्यार पा
लेता है. पहले मुझे लगा था ये शब्द भी तुम्हारे दिमाग की उपज है, लेकिन बाद
में तुमने जाने किस किताब में इस शब्द का अर्थ दिखलाया था. ऐसे ही न जाने
कहाँ कहाँ से कितने शब्द तुम खोज कर लाया करती थी. तुम कहती थी “इन्हीं
अजीबोगरीब शब्दों को पढ़कर मुझे भी दिल करता है कि मैं भी ऐसे शब्दों का
आविष्कार करूं जो बिलकुल डिफरेंट से हों और सुनने में बेहद प्यारे भी लगे
जो. मुझे कम से कम एक हज़ार शब्दों का तो आविष्कार करना ही है. That’s my
goal”. शब्दों को इजाद करने के मामले में कमाल की टैलेंटेड थी तुम. उस वक़्त
तुम्हारी मैं अकसर खिंचाई कर दिया करता था, इन बेतुके आदतों को लेकर लेकिन
सच कहूं तो मुझे अकसर तुम्हारी ये आदतें हैरान करती थीं.
अपने इस लिस्ट बनाने के साथ साथ तुमने टाइपरायटर का एक और उपयोग शुरू कर
दिया था. तुम्हारी ख्वाहिश थी कि तुम फिल्मों की कहानियों का कांसेप्ट और
स्क्रिप्ट लिखो. तुम्हारे मन में जो विषय है उसपर तुम फिल्म बनाओ. शब्दों
के लिस्ट के साथ साथ तुम अपने इस ख्वाहिश पर भी काम करना शुरू कर दिया था.
एक फिल्म आई थी उन दिनों, “प्यार में कभी कभी”, फिल्म और फिल्म के गाने
तुम्हें बेहद पसंद आये थे. उस फिल्म की एक ख़ास बात ये थी कि उसमें
डाईरेक्टर, प्रोड्यूसर से लेकर संगीतकार और कलाकार से लेकर स्पॉट बॉय तक
सभी नए थे. सभी की पहली फिल्म थी वो. मुझे सही से याद नहीं, लेकिन शायद
फिल्म के शुरुआत में ये बात कही गयी थी. इसके साथ ही ये भी कहा गया था या
शायद लिखा हुआ था फिल्म के क्रेडिट में कि “इस फिल्म से हम सभी दोस्तों की
तकदीरें जुडी हुई हैं..” बस, जिस दिन तुमने ये फिल्म देखी थी, उसके अगले ही
दिन से तुम ये जिद लेकर बैठ गयी कि हम सब भी एक फिल्म बनायेंगे एक साथ. जब
वे सभी नए लोग मिलकर एक प्यारी फिल्म बना सकते हैं तो हम क्यों नहीं? उस
फिल्म में भी तो सभी दोस्तों की कहानी थी, जैसे यहाँ हम सभी दोस्त हैं. कुछ
भी अंतर नहीं है, उस फिल्म से उन लोगों ने जहाँ अपनी दोस्ती को फिल्म में
दिखाया था हम अपनी दोस्ती को फिल्म में दिखाएँगे, और उनसे कहीं बेहतर
प्यारी और खूबसूरत फिल्म बनेगी हमारी. हमें भी फिल्म बनानी चाहिए.
हर बीतते दिन के साथ तुम्हारी ये फिल्म बनाने की ख्वाहिश और मजबूत होती जाती थी. तुमने तो सारे यूनिट के बारे में भी सोच लिया था.
मुझसे कहती तुम “फिल्म की कहानी तुम और मैं मिलकर डेवलप कर देंगे. गाने तुम
लिख देना, उसे कोरिओग्राफ मैं कर दूँगी और एक्टिंग के लिए हम दोनों ही
रहेंगे...मैं किसी और को लेने का रिस्क अफोर्ड नहीं कर सकती. हमारी लिखी
स्क्रिप्ट पर जितने अच्छे से हम अभिनय कर सकेंगे उतना दूसरा नहीं”. म्यूजिक
के लिए तुमने पिहू का नाम सोच रखा था, जो उन दिनों किसी इन्स्टिट्यूट से
म्यूजिक सीख रही थी. प्लेबैक सिंगिंग के लिए भी तुम्हारे पास एक प्लान था.
“मेरे किरदार के गाने तो मैं गा दूँगी..लेकिन तुम्हारे किरदार के लिए तुम
कैसे गाओगे? इतने बेसुरे हो तुम? लोग भाग जायेंगे..चलो वी विल फिगर समथिंग
आउट..”
यानी एक तरह से फिल्म का पूरा क्रू तुम्हारे मन में फिक्स्ड था. बस कोई
तगड़ा पैसे वाले व्यक्ति(किसी फिनन्सिर) को पकड़ना पड़ेगा, जिसका कोई अता-पता
नहीं था और तुम इसके लिए एकदम क्लूलेस थी. किसे अपने जाल में लपेटा जाए, हर
शाम तुम्हारी इसी बात की फ़िक्र में गुज़रती थी.
तुम अपनी इन दो नयी आदतों के साथ इतना गंभीर थी, कि अकसर तुम अपने बैग में
अपने इन दोनों ख्वाहिशों से जुड़े सभी कागजात लेकर चलती थी. तुम्हारे बैग
में पन्ने भरे होते थे, कुछ में फिल्म की कहानी(सिरिअसली क्रेजी कहानियां)
और कुछ में तुम्हारे अजीबोगरीब शब्दों के लिस्ट और उनके मानी. तुम हर शाम
मुझे ये दोनों पढ़ के सुनाती थी. मुझे बड़े ध्यान से तुम्हारी बातें सुनना
पड़ता था. नहीं सुनने का तो कोई स्कोप ही नहीं था. तुम किसी टीचर की तरह बीच
में बस ये पता करने के लिए कि मैं सुन रहा हूँ या नहीं, अपनी कहानी से कुछ
पूछ लेती थी. “अच्छा बताओ ये किसने कहा था?”, “उसकी दोस्त का नाम क्या
था?” “इस शब्द का क्या अर्थ बताया था मैंने?” और अगर मैं जो कभी जवाब नहीं
दे पाता तो मेरी खैर नहीं थी. हल्का भी मेरा ध्यान इधर उधर जाता तुम्हारी
कहानियों से, मुझे बाकायदा सज़ा दिया करती थी तुम.
मैं सोचता था उन दिनों कि हर शाम वापस घर जाने के बाद तुम दूसरा कुछ काम
करती ही नहीं होगी..अपना पूरा वक़्त तुम फ़िल्मी कहानियां और शब्दों को लिखने
में लगा देती होगी, वरना इतने पन्ने तुम कैसे लिख सकती थी? सच कहूं तो कभी
कभी तो मैं पढ़ते हुए थक भी जाता था. और एक दो कहानियों में तो हँसी आ जाती
थी मुझे, कितनी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाता था मैं ये मैं ही जानता
हूँ. कितनी बार तो ऐसा भी हुआ है कि जैसे ही आखिरी पन्ना पढ़ा मैंने, और
राहत की साँस ली कि चलो कहानी ख़त्म हुई...वैसे ही तुम जाने कहाँ से बैग से
कुछ और पन्ने निकाल कर मुझे थमा देती थी. “एक और पन्ना?” मैं कहता. “क्यों
पढ़ने का मन नहीं है? बोर हो रहे हो क्या?”, तुम इतने गुस्से में पूछती,
मेरी हालत वैसे ही ख़राब हो जाती थी. “मेरी क्या शामत आई है जो मैं बोर
हूँ..” मैं तुम्हें प्यार से कहता. तुम मुस्कराने लगती. प्यारी वाली
मुसकराहट नहीं, बल्कि एक ईवल स्माइल देने की नाकाम कोशिश करती तुम, और कहती
“ऐसे ही मेरे से डरते रहा करो. तुम्हारी भलाई इसी में है...”
बहुत समय तक तुम्हारी ये दो आदतें कायम रही थी. फिल्म के कहानियों का तो
तुम्हारे मूड पर निर्भर होता था, कभी कभी तुम खुद ऊबने लगती, “बड़ा मेहनत
वाला काम है , मुझसे नहीं होता” तुम कहती, तो कभी कभी बड़ी उत्साहित हो जाती
थी फिल्म बनाने को लेकर. लेकिन अपने शब्दों के लिस्ट को तुम फिल्मों से भी
ज्यादा गंभीरता से लिया करती थी. बहुत समय तक नए शब्दों को अपने लिस्ट में
तुम जोड़ते गयी थी. यहाँ तक कि बाद में जब हम दोनों अलग अलग शहरों में रहने
लगे थे तब भी तुम मुझे खत में अपने पूरे सप्ताह के ईजाद किये शब्दों को
लिखना भूलती नहीं थी. बाद में जाने क्या हुआ तुमने ये अपनी ये आदत भी छोड़
दी थी, वजह शायद मैं अच्छे से जानता हूँ. एक बात जो उन दिनों तुम्हें मैंने
कभी नहीं कहा था, आज कहता हूँ. तुम्हारी इस आदत के लिए भले मैं कभी
तुम्हारी खिंचाई कर दिया करता था, लेकिन सच कहूं तो तुम्हारी इस आदत से मैं
इम्प्रेस्ड था. तुम्हारी इस बेतुकी बेवजह की आदत की इज्ज़त करता था मैं. आज
जब कभी तुम्हारी उस अजीबोगरीब आदत के बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि वो
सच में एक किताब बन सकती थी. तुम्हारी ही तरह बिलकुल डिफरेंट, इलोजिकल और
नायाब किताब.