अज़ाने क़ब्र का सुबूत
क़ब्र पर बाद दफ़न अजान देना जाइज़ है!
हदीस और फ़िक़हे इबारत से इसका सुबूत
1 तेरा रब कौन
2 तेरा दीन क्या है
3 इस सुनहरी जाली वाले सब्ज गुम्बंद वाले आक़ा को तू क्या कहता है
पहले सवाल का जवाब हुआ:अश्हदु अन ला इलाहा इल्लल्लाहु
दूसरे का जवाब हुआ : हैय्या अलस्सलाते यानि मेरा दीन वह है जिसमे 5 नमाज़े फ़र्ज़ है (इस्लाम के सिवा किसी में 5 नमाज़ नहीं है )
तीसरा सवाल का जवाब हुआ : अश्हदु अन्ना मोहम्मदुर्रसूलल्लाह !
दूरे मुख्तार जिल्द 1 बाबुल अज़ान में है : दस जगह अज़ान कहना सुन्नत है जिसको यू फ़रमाया नमाज़ पंजगना के लिया बच्चो के कान में!आग लगते के वक़्त जब की जंग वाके हो
तर्जमा : नमाज़ के सिवा चन्द जग़ह अज़ान देना सुन्नत है बच्चे के कान मे , जमज़दा के, मिर्गी वाले के, गुस्सा वाले के कान में जिस जानवर या आदमी की आदत खराब हो उसके सामने ,लश्करो के जंग के वक़्त ,आग लग जाने के वक़्त, मैयत को कब्र में उतारते वक़्त , उसके पैदा होने पर क़यास करते हुए लेकिन इस अज़ान के सुन्नत होने का इब्ने हज़र रहमतुल्लाह इंकार किया है
हदीस और फ़िक़हे इबारत से इसका सुबूत
मिश्कात शरीफ किताबुल जनाइज़ बाब मा युकालु इन्दा मिन हाज़रेहिल मौत स. 140 )
अपने मुर्दो को सिखाओ ल इलाहा इल्लल्लाहु
दुनियावी जिंदगी खत्म होने पर इंसान के लिया 2 बड़े खतरनाक वक़्त है एक तो जाकानी का और दूसरा सवालाते कब्र बाद दफ़न का अगर जाकानी के वक़्त ख़ात्मा बिल खेर नसीब न हुआ तो उम्र भर का क्या धरा सब बर्बाद गया और अगर कब्र के इम्तिहान में नाकामी हुई तो आइन्दा की जिंदगी बर्बाद हुई दुनिया में तो अगर एक साल इम्तिहान में फेल हो गए तो साल आइन्दा दे लो मगर वह यह भी नहीं इसलिए जिन्दो को चाहिए इनदोनो वक़्तों में मरने वाले की इमदाद करे की मरते वक़्त कलिमा पढ पढ कर सुनाए और बाद दफ़न उस तक कलिमा की आवाज़ पहुचाए की उस वक़्त वो कलिमा पढ कर दुनिया से जाए और इस इम्तिहान में कामियाब हो लिहाज़ा इस हदीस के दो माना हो सकते है एक तो यह की मर रहा हो उसको कलिमा सिखाओ दूसरा यह की जो मर चूका हो उसको कलिमा सिखाओ पहले मानी मजाज़ी है और दूसरे हक़ीक़ी और बिल जरुरत मानी मजाज़ी लेना ठीक नहीं लिहाज़ा इस हदीस का यही तरज़मा हुआ की अपने मुर्दो को कलमा सिखाओ और यह वक़्त दफ़न के बाद का हैशामी जिल्द 1 बाबुदफन बहस तलकीन बादल मोत में है : अहले सुन्नत के नज़दीक यह हदीस अपने हक़ीक़ी माना पर महमूल है और हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम से रिवायत है की अपने दफ़न के बाद तलक़ीन करने का हुकुम दिया पास कब्र पर कहे की ए फला के बेटे तू उस दिन को याद कर जिस पर था ! शामी में इसी जगह है
दफ़न के बाद तलकीन करने से मना नहीं करना चाहिए क्युकी इसमें कोई नुक्सान तो हे नहीं बल्कि इसमें नफा है मैयत जिक्रे इलाही से उन्स हासिल करती है जैसा की हदीस में आया हे इस हदीस और इन इबारत से मालूम हुआ की दफन ए मैयत के बाद उसको कलिमा तैयबा की तलकीन मुस्तहब है ताकि मुर्दा सवालात में कामियाब हों और अजान में भी कलिमा है लिहाज़ा यह तलकीन ए मैयत है मुस्तहब है बल्कि अज़ान में पूरी तलकीन है क्युकि नक़ीरेंन मैयत से 3 सवाल करते है1 तेरा रब कौन
2 तेरा दीन क्या है
3 इस सुनहरी जाली वाले सब्ज गुम्बंद वाले आक़ा को तू क्या कहता है
पहले सवाल का जवाब हुआ:अश्हदु अन ला इलाहा इल्लल्लाहु
दूसरे का जवाब हुआ : हैय्या अलस्सलाते यानि मेरा दीन वह है जिसमे 5 नमाज़े फ़र्ज़ है (इस्लाम के सिवा किसी में 5 नमाज़ नहीं है )
तीसरा सवाल का जवाब हुआ : अश्हदु अन्ना मोहम्मदुर्रसूलल्लाह !
दूरे मुख्तार जिल्द 1 बाबुल अज़ान में है : दस जगह अज़ान कहना सुन्नत है जिसको यू फ़रमाया नमाज़ पंजगना के लिया बच्चो के कान में!आग लगते के वक़्त जब की जंग वाके हो
तर्जमा : नमाज़ के सिवा चन्द जग़ह अज़ान देना सुन्नत है बच्चे के कान मे , जमज़दा के, मिर्गी वाले के, गुस्सा वाले के कान में जिस जानवर या आदमी की आदत खराब हो उसके सामने ,लश्करो के जंग के वक़्त ,आग लग जाने के वक़्त, मैयत को कब्र में उतारते वक़्त , उसके पैदा होने पर क़यास करते हुए लेकिन इस अज़ान के सुन्नत होने का इब्ने हज़र रहमतुल्लाह इंकार किया है