Mix Shayri collection 32 / मिक्स शायरी संग्रह 32
बस तुम अपने होठों से, मेरे कानों मे उठने को कह देना …..
यकीन मानो हम जनाज़े पर होने के वावजुद,
तुम्हारा भरोसा नहीं तोङ़ेगें…!!
********
ये “शायरी” लिखना उनका काम नहीं,
जिनके “दिल” आँखों में बसा करते हैं..!!
“शायरी” तो वो सख्श लिखते है,
जो शराब से नहीं “कलम” से “नशा: करते हे..
*********
वोह जब करीब से हंस कर गुजर गए
कुछ खास दोस्तों के भी चेहरे उतर गए…..
*********
“वही है शाम वही खुशगवार मौसम फ़िर,
मैं कर रहा हूँ मेरी ख़्वाहिशों का मातम फ़िर।।।
********
यूँ तो एक ठिकाना मेरा भी हैं…
मगर तुम्हारे बिना मैं
लापता सा महसूस करता हु…
********
नजरों में दोस्तों की जो इतना खराब है,
उसका कसूर ये है कि वो कामयाब है।
********
कितनी शराबें चढ़ाईं है
तब जा कर तुम उतरी हो..
********
वो जो आँखों को सुकून देती थी….
कुछ रोज़ हुए हैं वो दिल को दर्द देती है…
*********
बड़ी बरकत है तेरे इश्क़ में
जब से हुआ है,
कोई दूसरा दर्द ही नहीं होता।…..
********
ये इत्तेफ़ाक़ नहीं कि आज हम तनहा है ……….
नाकाम होने के लिए भी बड़ी मशक्कत कि है हमने ……
*********
” काश तू मेरी आखो का आंसू बन जाए,
में रोना छोड़ दू तुझे खोने के डर से।”
********
उतनी बार तो उनकी सूरत भी नही देखी
जितनी बार उनके इंतज़ार में घड़ी देखी..
********
तुम मुझे अब याद नहीं आते…
तुम मुझे याद हो गये हो अब…
********
सुना था कभी किसी से,
ये भगवान की दुनिया है,
और मोहब्बत से चलती है…
करीब से जाना तो समझा,
ये स्वार्थ की दुनिया है,
और बस जरुरतों से चलती है…
********
जिंदगी जला दी हमने जैसे जलानी थी,
अब धुऐं पर तमाशा कैसा
राख पर बहस कैसी…
********
इस दुनिया में लाखों लोग रहते हैं;
कोई हँसता है तो कोई रोता है;
पर दुनिया में सुखी वही होता है;
जो शाम को दो पैग लगा कर सोता है।
********
जीत हासिल करनी हो तो काबिलियत बढाओ,
किस्मत की रोटी तो कुत्तेको भी नसीब होती है..
********
छोड़ दी सारी खाव्हिश जो तुझे पसंद ना थी ए दोस्त….
तेरी दोस्ती ना सही पर तेरी ख्वाहिश आज भी पूरी करते है..!!
********
मुकाम ऐ महोब्बत तूने समझा ही नहीं…
वरना जहाँ तक था तेरा साथ, वही तक थी ज़िंदगी मेरी..!!!!
********
मेरे अपने कहीं कम न हो जाएँ
इस डर से हमने मूसीबत में भी
किसी अपने को आजमाया नहीं ॥
********
सोचता हू छोड दू यै सिगरैट
पर सोचने के लीये भी एक चाहियै ….
********
मयखाने सजे थे, जाम का था दौर…
जाम में क्या था, ये किसने किया गौर…
जाम में “गम” था मेरे अरमानो का…
और सब कह रहे थे एक और एक और…
********
तुमको अपनी मिसाल दैता हुँ….
इश्क़ ज़िन्दा भी छोड़ देता हे..
********
चलो आज फिर थोडा मुस्कुराया जाये…
बिना माचिस के कुछ लोगो को जलाया जाये…!!
********
चल ख़्वाब छोड़ नींद से उठ..,,
जिंदगी फिर बुला रही है जीने के लिए.
********
कैसे रहेगी ज़िंदा ये तहजीब सोचिए….
स्कूलों से ज्यादा शहर में मयखाने हो गए…
********
रिश्ते चाहे कितने भी बुरे हो,लेकिन कभी भी उन्हें मत तोडना ,
क्युकी पानी चाहे कितना भी गदा ह़ो , पर प्यास नहीं तो आग़ तो बुजा ही देता है ।
********
अभी तो बस इश्क़ हुआ है,
मंजिल तो मयखाने में मिलेगी.
********
इतना कुछ हो रहा है इस दुनिया में….
क्या तुम मेरे नही हो सकते???
********
आदमी मजबूरियों में कभी हारता नहीं हैं…
इस शेहेर के टूटे हुए मकान में भी घर बसते हैं…
*********
कोई अब जगाती हैं इन आँखों को रातों में…
हमने सोने का वक़्त अब बदल लिया हैं…
*********
हर किसी को मैं खुश रख सकूं वो सलीका मुझे नहीं आता,
जो मैं नहीं हूँ वो दिखाने का तरीका मुझे नहीं आता.!
*********
बेर कैसे होते है “शबरी” से पूछो,
राम जी से पूछोगे तो मीठा ही बोलेंगे !!”
********
अभी मसरूफ हूँ काफी कभी फुरसत में सोचूंगा,
कि तुझको याद रखने में, मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ….
********
कुछ सपनों को पूरा करने निकले थे घर से,
किसको पता था कि घर जाना ही एक सपना बन जायेगा।
*******
कोई मुझ से पूछ बैठा ‘बदलना’ किस को कहते हैं? सोच में पड़ गया हूँ मिसाल किस की दूँ ? “मौसम” की या “अपनों” की..!!!!!
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यकीन मानो हम जनाज़े पर होने के वावजुद,
तुम्हारा भरोसा नहीं तोङ़ेगें…!!
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ये “शायरी” लिखना उनका काम नहीं,
जिनके “दिल” आँखों में बसा करते हैं..!!
“शायरी” तो वो सख्श लिखते है,
जो शराब से नहीं “कलम” से “नशा: करते हे..
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वोह जब करीब से हंस कर गुजर गए
कुछ खास दोस्तों के भी चेहरे उतर गए…..
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“वही है शाम वही खुशगवार मौसम फ़िर,
मैं कर रहा हूँ मेरी ख़्वाहिशों का मातम फ़िर।।।
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यूँ तो एक ठिकाना मेरा भी हैं…
मगर तुम्हारे बिना मैं
लापता सा महसूस करता हु…
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नजरों में दोस्तों की जो इतना खराब है,
उसका कसूर ये है कि वो कामयाब है।
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कितनी शराबें चढ़ाईं है
तब जा कर तुम उतरी हो..
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वो जो आँखों को सुकून देती थी….
कुछ रोज़ हुए हैं वो दिल को दर्द देती है…
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बड़ी बरकत है तेरे इश्क़ में
जब से हुआ है,
कोई दूसरा दर्द ही नहीं होता।…..
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ये इत्तेफ़ाक़ नहीं कि आज हम तनहा है ……….
नाकाम होने के लिए भी बड़ी मशक्कत कि है हमने ……
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” काश तू मेरी आखो का आंसू बन जाए,
में रोना छोड़ दू तुझे खोने के डर से।”
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उतनी बार तो उनकी सूरत भी नही देखी
जितनी बार उनके इंतज़ार में घड़ी देखी..
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तुम मुझे अब याद नहीं आते…
तुम मुझे याद हो गये हो अब…
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सुना था कभी किसी से,
ये भगवान की दुनिया है,
और मोहब्बत से चलती है…
करीब से जाना तो समझा,
ये स्वार्थ की दुनिया है,
और बस जरुरतों से चलती है…
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जिंदगी जला दी हमने जैसे जलानी थी,
अब धुऐं पर तमाशा कैसा
राख पर बहस कैसी…
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इस दुनिया में लाखों लोग रहते हैं;
कोई हँसता है तो कोई रोता है;
पर दुनिया में सुखी वही होता है;
जो शाम को दो पैग लगा कर सोता है।
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जीत हासिल करनी हो तो काबिलियत बढाओ,
किस्मत की रोटी तो कुत्तेको भी नसीब होती है..
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छोड़ दी सारी खाव्हिश जो तुझे पसंद ना थी ए दोस्त….
तेरी दोस्ती ना सही पर तेरी ख्वाहिश आज भी पूरी करते है..!!
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मुकाम ऐ महोब्बत तूने समझा ही नहीं…
वरना जहाँ तक था तेरा साथ, वही तक थी ज़िंदगी मेरी..!!!!
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मेरे अपने कहीं कम न हो जाएँ
इस डर से हमने मूसीबत में भी
किसी अपने को आजमाया नहीं ॥
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सोचता हू छोड दू यै सिगरैट
पर सोचने के लीये भी एक चाहियै ….
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मयखाने सजे थे, जाम का था दौर…
जाम में क्या था, ये किसने किया गौर…
जाम में “गम” था मेरे अरमानो का…
और सब कह रहे थे एक और एक और…
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तुमको अपनी मिसाल दैता हुँ….
इश्क़ ज़िन्दा भी छोड़ देता हे..
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चलो आज फिर थोडा मुस्कुराया जाये…
बिना माचिस के कुछ लोगो को जलाया जाये…!!
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चल ख़्वाब छोड़ नींद से उठ..,,
जिंदगी फिर बुला रही है जीने के लिए.
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कैसे रहेगी ज़िंदा ये तहजीब सोचिए….
स्कूलों से ज्यादा शहर में मयखाने हो गए…
********
रिश्ते चाहे कितने भी बुरे हो,लेकिन कभी भी उन्हें मत तोडना ,
क्युकी पानी चाहे कितना भी गदा ह़ो , पर प्यास नहीं तो आग़ तो बुजा ही देता है ।
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अभी तो बस इश्क़ हुआ है,
मंजिल तो मयखाने में मिलेगी.
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इतना कुछ हो रहा है इस दुनिया में….
क्या तुम मेरे नही हो सकते???
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आदमी मजबूरियों में कभी हारता नहीं हैं…
इस शेहेर के टूटे हुए मकान में भी घर बसते हैं…
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कोई अब जगाती हैं इन आँखों को रातों में…
हमने सोने का वक़्त अब बदल लिया हैं…
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हर किसी को मैं खुश रख सकूं वो सलीका मुझे नहीं आता,
जो मैं नहीं हूँ वो दिखाने का तरीका मुझे नहीं आता.!
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बेर कैसे होते है “शबरी” से पूछो,
राम जी से पूछोगे तो मीठा ही बोलेंगे !!”
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अभी मसरूफ हूँ काफी कभी फुरसत में सोचूंगा,
कि तुझको याद रखने में, मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ….
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कुछ सपनों को पूरा करने निकले थे घर से,
किसको पता था कि घर जाना ही एक सपना बन जायेगा।
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कोई मुझ से पूछ बैठा ‘बदलना’ किस को कहते हैं? सोच में पड़ गया हूँ मिसाल किस की दूँ ? “मौसम” की या “अपनों” की..!!!!!
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