
न मंज़िल हूँ न मंज़िल आशना हूँ
मिसाले-बर्ग उड़ता फिर रहा हूँ
मेरी आँखों के ख़ुश्को-तर में झाँकों
कभी सहरा कभी दरिया नुमा हूँ
वह ऐसा कौन है जिससे बिछड़कर
ख़ुद अपने शहर में तन्हा हुआ हूँ
जो मेरी रूह में उतरा हुआ है
मैं उससे बेतअल्लुक भी रहा हूँ
सुला दो ऐ हवाओं अब सुला दो
बहुत रातों का मैं जागा हुआ हूँ