Mix Shayri collection 39 / मिक्स शायरी संग्रह 39
बाँटता है क्यूँ मुझे भगवान् और अल्लाह में
सरफिरे इंसान क्या मैं मूरिसी जागीर हूँ
समा जाता है सारा आसमां इक आँख के तिल में
किसी के अज्म को मत आँक उसके कद्दो क़ामत से
आप बेदस्तोकरम करते हैं उम्मीदे दुआ
बद्दुआ भी बे'वज़ह देता नहीं कोई यहाँ
परवाना पेशोपश में है जाए तो किस तरफ
रौशन शमा के रूबरू चेहरा है आप का
ये कैसे मान लूं मुझसे मुहब्बत तुम नहीं करते
कसम जब खा रहे थे, सर पे मेरे हाँथ क्यूँ रक्खा
साए सा उनके साथ ही रहता रहा हूँ मैं
नाराज़ हैं इस पर की लिपट क्यूँ नहीं जाता
औलाद को इंसान बनाने की फिक्र में
माँ बाप को मरने की भी फुर्सत नहीं मिली
रखा बारहा हाँथ सीने पे मेरे
अयाँ हो गयी तेरी बेऐतबारी
हमारी आरजूओं ने हमें इन्सां बना डाला
वगरना जब जहां में आये थे, बन्दे खुदा के थे
हमारा चार दिन की ज़िंदगी में हाल है ऐसा
न जाने लोग कैसे हैं जो सौ सौ साल जीते हैं
हमने बांटी हैं जहां में इस क़दर खुशियाँ
बाद मेरे जो मुझे सोचेगा, रो देगा
दुश्मनी तू आबरू अपनी बचा या डूब मर
देख दुश्मन गोर पर मेरी खड़ा है अश्क़बार
हमारे जिस्म को अब छोड़ मेरी रूह पाकीज़ा
पुराना हो चूका ये पैरहन, अब तो बदल ही दे
बेवज़ह मौत बदनाम है
जब की लेती है जां ज़िंदगी
जिसे देख कर चाँद को शर्म आये
मुहब्बत का वो दाग मुझ पर लगा दे
मेरी नाराज़गी पर हक़ मेरे अहबाब का है बस
भला दुश्मन से भी कोई कभी नाराज़ होता है
निकल आते हैं आंसू गर जरा सी चूक हो जाये
किसी की आँख में काजल लगाना खेल थोड़ी है
पता है जिसको मुस्तकबिल हमारा
वो अपने आज से अनजान क्यूँ है
बांट देता है सभी को ये उजाला
हो सके तो धर्म दीपक का बदल दो
जब तक बादलों को फ़िक्र धरती की रहेगी यूँ
सूरज की तपिश से कुछ बुरा होगा नहीं इसका
सताने को तुम्हे अक्सर हमारा जी किया है पर
तुम्हारी मुस्कराहट .... लुत्फ़ ये लेने नहीं देती
गुमां इतना नहीं अच्छा, तू सुन ले कब्ल जाने के
पलटने पर मुकर सकता हूँ, तुझको जानने से भी
कभी सोचा न था तन्हाइयों का दर्द यूँ होगा
मेरे दुश्मन ही मेरा हाल मुझसे पूंछते हैं अब
मुहब्बत के लिए इक ज़िंदगी कम पड़ गयी होगी
तभी तो सात जन्मों का खुदा ने कर दिया बंधन
अयां था सच उदास आँखों में
पलट कर देख तो लिया होता
जब तुम नहीं तो सामने दस बीस हों तो क्या
इक्कीस हों ... बाईस हों ... तेईस हों तो क्या
बिछड़ना तुमसे, है रोने का बाइस
जलावतनी ..... सुकूं देती कहाँ है
बहुत . चुभने लगे हैं
थकी आँखों में आंसू
मशाइख .. बात चोखी कह गए हैं
समझते हैं सभी पर वक्ते आखिर
तेरे अलक़ाब हैं तेरी अमानत
इन्ही को सोचकर जीता रहूँगा
अभी तो भीड़ में मशगूल हो तुम
कभी ... तन्हाइयों में बात होगी
नहीं चल पायेगा वो एक पग भी
भले बैसाखियाँ सोने की दे दो
सहारे की जिसे आदत पडी हो
उसे हिम्मत खड़े होने की दे दो
कल की जिन्हें है फ़िक्र वो रोयेंगे रात भर
जीते हैं आज में जो .. वो सोयेंगे रात भर
औरों की रोशनी से जो चमकेगा चाँद सा
एहसान से ... दबा ही रहेगा वो उम्र भर
फैसला ये मेरे यार बहुत मुश्किल है
तेरे ज़ुल्म सहें या कि फ़ना हो जाएँ
नहीं अच्छा है ... खाली हाथ जाना
अभी तो वक़्त है कुछ तो कमा लो
माँ बाप ने जो भी किया
वो फ़र्ज़ था या क़र्ज़ था
चमक .. ऐसी नही हो
की आँखें खुल न पायें
सरफिरे इंसान क्या मैं मूरिसी जागीर हूँ
समा जाता है सारा आसमां इक आँख के तिल में
किसी के अज्म को मत आँक उसके कद्दो क़ामत से
आप बेदस्तोकरम करते हैं उम्मीदे दुआ
बद्दुआ भी बे'वज़ह देता नहीं कोई यहाँ
परवाना पेशोपश में है जाए तो किस तरफ
रौशन शमा के रूबरू चेहरा है आप का
ये कैसे मान लूं मुझसे मुहब्बत तुम नहीं करते
कसम जब खा रहे थे, सर पे मेरे हाँथ क्यूँ रक्खा
साए सा उनके साथ ही रहता रहा हूँ मैं
नाराज़ हैं इस पर की लिपट क्यूँ नहीं जाता
औलाद को इंसान बनाने की फिक्र में
माँ बाप को मरने की भी फुर्सत नहीं मिली
रखा बारहा हाँथ सीने पे मेरे
अयाँ हो गयी तेरी बेऐतबारी
हमारी आरजूओं ने हमें इन्सां बना डाला
वगरना जब जहां में आये थे, बन्दे खुदा के थे
हमारा चार दिन की ज़िंदगी में हाल है ऐसा
न जाने लोग कैसे हैं जो सौ सौ साल जीते हैं
हमने बांटी हैं जहां में इस क़दर खुशियाँ
बाद मेरे जो मुझे सोचेगा, रो देगा
दुश्मनी तू आबरू अपनी बचा या डूब मर
देख दुश्मन गोर पर मेरी खड़ा है अश्क़बार
हमारे जिस्म को अब छोड़ मेरी रूह पाकीज़ा
पुराना हो चूका ये पैरहन, अब तो बदल ही दे
बेवज़ह मौत बदनाम है
जब की लेती है जां ज़िंदगी
जिसे देख कर चाँद को शर्म आये
मुहब्बत का वो दाग मुझ पर लगा दे
मेरी नाराज़गी पर हक़ मेरे अहबाब का है बस
भला दुश्मन से भी कोई कभी नाराज़ होता है
निकल आते हैं आंसू गर जरा सी चूक हो जाये
किसी की आँख में काजल लगाना खेल थोड़ी है
पता है जिसको मुस्तकबिल हमारा
वो अपने आज से अनजान क्यूँ है
बांट देता है सभी को ये उजाला
हो सके तो धर्म दीपक का बदल दो
जब तक बादलों को फ़िक्र धरती की रहेगी यूँ
सूरज की तपिश से कुछ बुरा होगा नहीं इसका
सताने को तुम्हे अक्सर हमारा जी किया है पर
तुम्हारी मुस्कराहट .... लुत्फ़ ये लेने नहीं देती
गुमां इतना नहीं अच्छा, तू सुन ले कब्ल जाने के
पलटने पर मुकर सकता हूँ, तुझको जानने से भी
कभी सोचा न था तन्हाइयों का दर्द यूँ होगा
मेरे दुश्मन ही मेरा हाल मुझसे पूंछते हैं अब
मुहब्बत के लिए इक ज़िंदगी कम पड़ गयी होगी
तभी तो सात जन्मों का खुदा ने कर दिया बंधन
अयां था सच उदास आँखों में
पलट कर देख तो लिया होता
जब तुम नहीं तो सामने दस बीस हों तो क्या
इक्कीस हों ... बाईस हों ... तेईस हों तो क्या
बिछड़ना तुमसे, है रोने का बाइस
जलावतनी ..... सुकूं देती कहाँ है
बहुत . चुभने लगे हैं
थकी आँखों में आंसू
मशाइख .. बात चोखी कह गए हैं
समझते हैं सभी पर वक्ते आखिर
तेरे अलक़ाब हैं तेरी अमानत
इन्ही को सोचकर जीता रहूँगा
अभी तो भीड़ में मशगूल हो तुम
कभी ... तन्हाइयों में बात होगी
नहीं चल पायेगा वो एक पग भी
भले बैसाखियाँ सोने की दे दो
सहारे की जिसे आदत पडी हो
उसे हिम्मत खड़े होने की दे दो
कल की जिन्हें है फ़िक्र वो रोयेंगे रात भर
जीते हैं आज में जो .. वो सोयेंगे रात भर
औरों की रोशनी से जो चमकेगा चाँद सा
एहसान से ... दबा ही रहेगा वो उम्र भर
फैसला ये मेरे यार बहुत मुश्किल है
तेरे ज़ुल्म सहें या कि फ़ना हो जाएँ
नहीं अच्छा है ... खाली हाथ जाना
अभी तो वक़्त है कुछ तो कमा लो
माँ बाप ने जो भी किया
वो फ़र्ज़ था या क़र्ज़ था
चमक .. ऐसी नही हो
की आँखें खुल न पायें