Mix Shayri collection 40 / मिक्स शायरी संग्रह 40
इक दो पर तो .. टूटेंगे परिंदे
तू परवाज से पीछे न हटना
अगर इंसान मिल जाये मुकम्मल
तो सर पत्थर के आगे क्यूँ झुकाऊँ
खयालों में तेरे .... मैंने बिता दी ज़िंदगी सारी
इबादत कर नहीं पाया खुदा! नाराज़ मत होना
तुम्हारी याद में आंसू ........ बहाना यूँ जरूरी है
रुके दरिया के पानी को तो प्यासा भी नहीं छूता
सूना तो था की जाता है सदा प्यासा कुएं के पास
समंदर की बुझाने प्यास खुद जाता है क्यूँ दरिया
नसीब अपना असर हर हाल में दिखला ही जाता है
चलो कितना संभलकर, पाँव ठोकर खा ही जाता है
ज़िंदगी हो सकी न मेरी पर
मौत पर इख्तियार है मेरा
जिन कन्धों पर सर रख कर रोना चाहा
उन कन्धों ने मुझको .. बस ढोना चाहा
कुछ नये सपने .. उसीके देखना है फिर मुझे
सो गया हूँ मैं बहा कर जिसकी यादें आँख से
अगर है चैन से सोने की ख्वाहिश
किसी के ख्वाब में कर लो बसेरा
तू परवाज से पीछे न हटना
अगर इंसान मिल जाये मुकम्मल
तो सर पत्थर के आगे क्यूँ झुकाऊँ
खयालों में तेरे .... मैंने बिता दी ज़िंदगी सारी
इबादत कर नहीं पाया खुदा! नाराज़ मत होना
तुम्हारी याद में आंसू ........ बहाना यूँ जरूरी है
रुके दरिया के पानी को तो प्यासा भी नहीं छूता
सूना तो था की जाता है सदा प्यासा कुएं के पास
समंदर की बुझाने प्यास खुद जाता है क्यूँ दरिया
नसीब अपना असर हर हाल में दिखला ही जाता है
चलो कितना संभलकर, पाँव ठोकर खा ही जाता है
ज़िंदगी हो सकी न मेरी पर
मौत पर इख्तियार है मेरा
जिन कन्धों पर सर रख कर रोना चाहा
उन कन्धों ने मुझको .. बस ढोना चाहा
कुछ नये सपने .. उसीके देखना है फिर मुझे
सो गया हूँ मैं बहा कर जिसकी यादें आँख से
अगर है चैन से सोने की ख्वाहिश
किसी के ख्वाब में कर लो बसेरा
मैं हथेली पर लिए फिरता हूँ सूरज
जानता हूँ, बर्फ पर लेटूंगा इक दिन
तेरी साँसों की आहट को भी जब पहचानता हूँ मैं
मुझे रुसवा करे तू.. इसकी गुंजाइश कहाँ है अब
साथ फूलों का मिले, बस इस लिए
दोस्ती ..... काँटों से भी करनी पडी
कुछ नये सपने .. उसीके देखना है फिर मुझे
सो गया हूँ मैं बहा कर जिसकी यादें आँख से
अगर है चैन से सोने की ख्वाहिश
किसी के ख्वाब में कर लो बसेरा
गाँव की पतली पगडंडी से हम जो शहर तक आ पहुचे
चौराहों की भीड़ भाड़ में ....... रस्ता मंजिल सब भूले
तुम्हारी रूह को आराम अजमल आ गया क्या
सुना है रूह तो .... मुजरिम कभी होती नहीं है
कुछ तो बाकी है .. अभी उम्मीद कैसे छोड़ दूं
आज उनकी आँख में आंसू मुझे अच्छे लगे
जा मेरे दुश्मन .. तुम्हारी दुश्मनी पे थू
तुमसे अच्छी दुश्मनी यारों ने दी निभा
बिना मकसद बहुत मुश्किल है जीना
खुदा! आबाद रखना ...... दुश्मनों को
ज़िंदगी भर के लिए है मौत से अनुबंध मेरा
जब तलक जिंदा रहूँगा पास फटकेगी नहीं वो
ख़्वाब में तो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते कभी
इसलिए राहे हकीकत पर चला करता हूँ मैं
देख कर मुझको निगाहें फेर क्यूँ लेते हो तुम
क्या मेरे चेहरे पे अपना अक्स दिखता है तुम्हे
देख कर चेहरा, पलट देते हैं अब वो आइना
मौसमे फुरकत उन्हें सूरत कोई भाती नहीं
भले ही दर्द पर मेरे कोई हँसे .... तो हँसे
मेरी हंसी किसी के दर्द का सबब न बने
जो मेरे जेह्न में रहते हैं उसूलों की तरह
वो मेरी ताक में बैठे हैं बगूलों की तरह
कब तलक देखेगा अश्कों का जनाजा
बेरहम अब तो मेरे नजदीक आजा
मैं खुश हूँ ...... पाँव मेरे हैं ज़मीं पर
तू अपना आसमां तह कर के रख ले
तू मेरी बरबादियों के जश्न में शामिल रहा
ये तसव्वुर ही बहुत आराम देता है मुझे
इंसान से मुसीबतें .... डरती हैं इस क़दर
आती नहीं कभी अकेले, वो किसी के सर
दिल जब कुछ कहने लगता है आँखों से
सारा दर्द उमड़ पड़ता है ....... आँखों से
हम चले थे सूए सहरा खुद, बुझाने प्यास
छोड़ कर दरिया समंदर से लगा ली आस
साथ मेरे था जो इक इंसान की तरह
आज रूठा है वही भगवान की तरह
ज़िंदगी तेरे सहारे ...... मौत से लड़ता रहा
क्या करूँ इस ज़िंदगी का मैं बता तेरे बिना
आख़िरी साँसों पे तेरा नाम मैंने लिख दिया
तेरी मर्ज़ी के बिना अब छू नहीं सकता कोई
रास्ता मुझको दिखाया और ओझल हो गए
आप के रहमो करम का शुक्रिया कैसे करूँ
ख्वाहिशें थीं चाँद तारे तोड़ लाने की मगर
देख लो बिखरा पडा है वो जमीं पर टूट कर
भर गया है जहर इतना आदमी में
आस्तीं के सांप की औकात क्या है
प्रश्न यह सबसे बड़ा है
आप अच्छे हैं तो क्यूँ हैं
आज उनकी इस अदा पर हो गया हूँ मैं फ़िदा
फोड़ कर आँखें मेरी ... कहते हैं नाबीना मुझे
ग़म छुपाये फिर रहे थे
फट पड़े हैं आज बादल
तू कांटे राह में कितने बिछा दे, बस यही होगा
हमारे पाँव के छाले बहा कर .... ये भी रो देंगे
जिन्हें भाती है मगरिब की हवा वो भूल जाते हैं
कि सूरज भी उसी जानिब को जाकर डूब जाता है
माँ बाबू भाई बहना हैं सच्चे रिश्ते
बाकी सब रिश्ते इनके कायल होते हैं
अगर ये चाँद सूरज .... बीच में ...... आये नहीं होते
मिलन अब तक ज़मीं और आसमां का हो चुका होता
तुम्हे बेवज्ह ही इसका गुमां है
हक़ीक़त में तो ऊंचा आसमां है
शादियों की रीति में बदलाव लाना चाहिए
कुंडली के साथ ब्लड ग्रुप भी मिलाना चाहिए
आपसे नाराज़गी हो
दोस्ती ऐसी कहाँ है
संग को भगवान कर देता है पर
आदमी इंसान बन पाता नहीं
टूट कर भी आइना .... सच बोलता है
पर सबक कुछ भी नही लेता है इन्सां
कोई भी शै नहीं मख्सूस इतनी
कि मैं अपनी अना को भूल जाऊँ
आसमां जब आशियाँ था चाँद तारे पासबां थे
अब जमीं पर आ गए तो देखिये तनहा पड़े हैं
आप जिसके वास्ते मुझसे किनारा कर गए
आपसे बच कर वही मुझको इशारा कर गए
खून के रिश्ते भी बेमानी हुए हैं
सुर्खियाँ बाक़ी कहाँ हैं अब लहू में
तेरी ही जुस्तजू में जी लिया ..... इक ज़िंदगी मैंने
गले मुझको लगाकर ख़त्म साँसों का सफ़र कर दे
देख भस्मासुर बने हैं आज अपने ही तेरे
रास्ता है एक, मरकर लाज रिश्तों की बचा
भले ही दर्द पर मेरे ... कोई हँसे तो हँसे
मेरी हंसी किसी के दर्द का सबब न बने
भूल जा अब तू मुझे आसान है तेरे लिए
भूलना तुझको नहीं आसां मगर मेरे लिए
आपकी आँखों में कुछ अपना सा लगता है मुझे
काश वो सच हो जो इक सपना सा लगता है मुझे
टूटते रिश्तों को अपने जोड़ कर यदि रख सकें
टूटते तारों से फिर कुछ माँगना पड़ता नहीं
भरो ऊंची उड़ाने पर ........ हमेशा याद ये रखना
तुम्हे फिर लौट कर वापस जमीं पर पाँव रखना है
आप मेरी राह में ........ कांटे बिछाते जाइए
मुझको पाए आबला से ये दिलाते हैं नजात
किताबे जीस्त सारी ज़िंदगी मैं पढ़ नही पाया
वरक अब देखना चाहा तो दीमक चाट बैठे हैं
जानता हूँ, बर्फ पर लेटूंगा इक दिन
तेरी साँसों की आहट को भी जब पहचानता हूँ मैं
मुझे रुसवा करे तू.. इसकी गुंजाइश कहाँ है अब
साथ फूलों का मिले, बस इस लिए
दोस्ती ..... काँटों से भी करनी पडी
कुछ नये सपने .. उसीके देखना है फिर मुझे
सो गया हूँ मैं बहा कर जिसकी यादें आँख से
अगर है चैन से सोने की ख्वाहिश
किसी के ख्वाब में कर लो बसेरा
गाँव की पतली पगडंडी से हम जो शहर तक आ पहुचे
चौराहों की भीड़ भाड़ में ....... रस्ता मंजिल सब भूले
तुम्हारी रूह को आराम अजमल आ गया क्या
सुना है रूह तो .... मुजरिम कभी होती नहीं है
कुछ तो बाकी है .. अभी उम्मीद कैसे छोड़ दूं
आज उनकी आँख में आंसू मुझे अच्छे लगे
जा मेरे दुश्मन .. तुम्हारी दुश्मनी पे थू
तुमसे अच्छी दुश्मनी यारों ने दी निभा
बिना मकसद बहुत मुश्किल है जीना
खुदा! आबाद रखना ...... दुश्मनों को
ज़िंदगी भर के लिए है मौत से अनुबंध मेरा
जब तलक जिंदा रहूँगा पास फटकेगी नहीं वो
ख़्वाब में तो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते कभी
इसलिए राहे हकीकत पर चला करता हूँ मैं
देख कर मुझको निगाहें फेर क्यूँ लेते हो तुम
क्या मेरे चेहरे पे अपना अक्स दिखता है तुम्हे
देख कर चेहरा, पलट देते हैं अब वो आइना
मौसमे फुरकत उन्हें सूरत कोई भाती नहीं
भले ही दर्द पर मेरे कोई हँसे .... तो हँसे
मेरी हंसी किसी के दर्द का सबब न बने
जो मेरे जेह्न में रहते हैं उसूलों की तरह
वो मेरी ताक में बैठे हैं बगूलों की तरह
कब तलक देखेगा अश्कों का जनाजा
बेरहम अब तो मेरे नजदीक आजा
मैं खुश हूँ ...... पाँव मेरे हैं ज़मीं पर
तू अपना आसमां तह कर के रख ले
तू मेरी बरबादियों के जश्न में शामिल रहा
ये तसव्वुर ही बहुत आराम देता है मुझे
इंसान से मुसीबतें .... डरती हैं इस क़दर
आती नहीं कभी अकेले, वो किसी के सर
दिल जब कुछ कहने लगता है आँखों से
सारा दर्द उमड़ पड़ता है ....... आँखों से
हम चले थे सूए सहरा खुद, बुझाने प्यास
छोड़ कर दरिया समंदर से लगा ली आस
साथ मेरे था जो इक इंसान की तरह
आज रूठा है वही भगवान की तरह
ज़िंदगी तेरे सहारे ...... मौत से लड़ता रहा
क्या करूँ इस ज़िंदगी का मैं बता तेरे बिना
आख़िरी साँसों पे तेरा नाम मैंने लिख दिया
तेरी मर्ज़ी के बिना अब छू नहीं सकता कोई
रास्ता मुझको दिखाया और ओझल हो गए
आप के रहमो करम का शुक्रिया कैसे करूँ
ख्वाहिशें थीं चाँद तारे तोड़ लाने की मगर
देख लो बिखरा पडा है वो जमीं पर टूट कर
भर गया है जहर इतना आदमी में
आस्तीं के सांप की औकात क्या है
प्रश्न यह सबसे बड़ा है
आप अच्छे हैं तो क्यूँ हैं
आज उनकी इस अदा पर हो गया हूँ मैं फ़िदा
फोड़ कर आँखें मेरी ... कहते हैं नाबीना मुझे
ग़म छुपाये फिर रहे थे
फट पड़े हैं आज बादल
तू कांटे राह में कितने बिछा दे, बस यही होगा
हमारे पाँव के छाले बहा कर .... ये भी रो देंगे
जिन्हें भाती है मगरिब की हवा वो भूल जाते हैं
कि सूरज भी उसी जानिब को जाकर डूब जाता है
माँ बाबू भाई बहना हैं सच्चे रिश्ते
बाकी सब रिश्ते इनके कायल होते हैं
अगर ये चाँद सूरज .... बीच में ...... आये नहीं होते
मिलन अब तक ज़मीं और आसमां का हो चुका होता
तुम्हे बेवज्ह ही इसका गुमां है
हक़ीक़त में तो ऊंचा आसमां है
शादियों की रीति में बदलाव लाना चाहिए
कुंडली के साथ ब्लड ग्रुप भी मिलाना चाहिए
आपसे नाराज़गी हो
दोस्ती ऐसी कहाँ है
संग को भगवान कर देता है पर
आदमी इंसान बन पाता नहीं
टूट कर भी आइना .... सच बोलता है
पर सबक कुछ भी नही लेता है इन्सां
कोई भी शै नहीं मख्सूस इतनी
कि मैं अपनी अना को भूल जाऊँ
आसमां जब आशियाँ था चाँद तारे पासबां थे
अब जमीं पर आ गए तो देखिये तनहा पड़े हैं
आप जिसके वास्ते मुझसे किनारा कर गए
आपसे बच कर वही मुझको इशारा कर गए
खून के रिश्ते भी बेमानी हुए हैं
सुर्खियाँ बाक़ी कहाँ हैं अब लहू में
तेरी ही जुस्तजू में जी लिया ..... इक ज़िंदगी मैंने
गले मुझको लगाकर ख़त्म साँसों का सफ़र कर दे
देख भस्मासुर बने हैं आज अपने ही तेरे
रास्ता है एक, मरकर लाज रिश्तों की बचा
भले ही दर्द पर मेरे ... कोई हँसे तो हँसे
मेरी हंसी किसी के दर्द का सबब न बने
भूल जा अब तू मुझे आसान है तेरे लिए
भूलना तुझको नहीं आसां मगर मेरे लिए
आपकी आँखों में कुछ अपना सा लगता है मुझे
काश वो सच हो जो इक सपना सा लगता है मुझे
टूटते रिश्तों को अपने जोड़ कर यदि रख सकें
टूटते तारों से फिर कुछ माँगना पड़ता नहीं
भरो ऊंची उड़ाने पर ........ हमेशा याद ये रखना
तुम्हे फिर लौट कर वापस जमीं पर पाँव रखना है
आप मेरी राह में ........ कांटे बिछाते जाइए
मुझको पाए आबला से ये दिलाते हैं नजात
किताबे जीस्त सारी ज़िंदगी मैं पढ़ नही पाया
वरक अब देखना चाहा तो दीमक चाट बैठे हैं