Mix Shayri collection 41 / मिक्स शायरी संग्रह 41
लक्ष्य मेरा है फंसा जब तक भंवर में
मैं किनारे की तरफ रुख ही करूँ क्यूँ
यही सच है कि पत्थर भी नहीं होता है पत्थर दिल
नमी के जोर पर उनपर भी काई उग ही आती है
बदन में खूं नहीं है जब
नसें क्या ख़ाक उभरेंगी
लहरों ने जब बार बार चूमा उसको
धीरे से पत्थर पानी में उतर गया
आपकी खुशियाँ बढ़ें दिन रात दूनी चौगुनी
इस लिए मैं दूर खुद को आप से करता गया
क्या पता रस्ते में ही मंजिल जो मिल जाये कहीं
इस लिए मैं ज़िंदगी भर भागता फिरता रहा
तुम्हारी बेरुखी नेमत है मुझको
सफ़र आसां रहेगा ज़िंदगी का
गाँव में लडकियाँ अब यूँ सजने लगीं
जैसे झोपड़ के ऊपर महल हों बने
शहर को दुल्हन बनाने के लिए
जाने कितने गाँव बेवा हो गए
इम्तिहाने मौत से मुझको गुजरना है अभी
लाज़िमी है क्यूँ कि दुनिया के लिए जिंदा हूँ मैं
आपने देकर थपेड़े ...... काम आसां कर दिया
यूँ भी बादल को बरसना था, भले कुछ देर बाद
आस तो टूटी है लेकिन
सांस अब तक चल रही है
हम रहे लड़ते अभी तक खुद हमारी रूह से
आपसे तर्के त'आलुक का हुआ अब फैसला
चाल ऐसी चल गया शातिर जुआरी की तरह
खर्च उसपर हो गया मैं .... रेजगारी की तरह
है अगर तुझको तवक्को मैं बिछड़ कर ग़मज़दा हूँ
तो मुझे समझा नहीं तू, गम रहेगा बस इसी का
गैरपुख्ता ज़िंदगी के वास्ते
मौत से लड़ते रहे ता'उम्र हम
दुश्मनी की हद .... दिखानी है अगर
ज़िक्र भी मत कर, नज़र अंदाज़ कर
मंजिलें होती हैं कुछ ऐसी कि जिन की राह में
दम निकल जाए अगर तो फख्र की ही बात है
आपको खुश देखकर, . मुझको खुशी दूनी हुई
क्या हुआ जो आप बिन दुनिया मेरी सूनी हुई
ज़िस्म से मेरे तडपता दिल कोई तो खींच लो
मैं बगैर इसके भी जी लूँगा मुझे अब है यकीं
जब किसी की बेवफाई पर करे रोने का दिल
आँख से आँसू नहीं ... तेज़ाब बहना चाहिए
मेरी उल्फत को तू मजबूरी समझना बंद कर
छोड़ तो आया हूँ मैं कुनबा, अना के वास्ते
था गुमां मुझको सिखा दूंगा उसे भी तैरना
पार जा पंहुचा वो मेरी लाश पर ही बैठ कर
है मेरे ज़िस्म में तू खून ओ पानी की तरह
याद रक्खूँगा तुझे गुजरी जवानी की तरह
मैंने अपने सपने जिनको सौंप दिए थे
वो तो आज हक़ीक़त में भी झूठे निकले
गम निभाता है खुशी का साथ ऐसे
रोशनी का अक्स जैसे है अँधेरा
मौत ने मुझको तवज्जो दी नहीं
इसलिए हर हाल में जीता हूँ मैं
है खबर अच्छी कि आजा मुह तेरा मीठा करें
नफरतें तेरी हुई हैं बा'खुशी दिल को कुबूल
रो पड़ा बच्चा .... खिलौना तोड़कर
और बड़ों को कुछ नसीहत हो गयी
हक तुझे है खेल मुझसे इक खिलौना जानकर
और मेरा फ़र्ज़ है ........ मैं टूट कर हँसता रहूँ
मुस्कराहट अपने होठों पर सजाने के लिए
फूट कर रोता रहा हूँ जाने कितने साल तक
चढ़े सूरज का मुस्तक़बिल यही है
किसी छिछली नदी में डूब जाना
नहीं छूटे हैं उसके दाग अबतक
बहुत दिन चाँद को धोया नदी ने
ले रहा है तू खुदाया इम्तिहां दर इम्तिहां
पर सियाही ज़िंदगी की ख़त्म क्यूँ होती नहीं
भरो ऊंची उड़ाने पर ........ हमेशा याद ये रखना
जिस्म की सारी रगें तो स्याह खूं से भर गयी हैं
अश्क़ ही बहते हैं क्यूँ गम और खुशी में ऐ खुदा
कही ईसा, कहीं मौला, कहीं भगवान रहते हैं
भरोसा कर लिया दरिया पे तो मौजों से क्या डरना
न टोपी है ..... न दाढी है .....तिवारी ख़ाक शायर है
जिस्म से कैसे जुदा कर दूं मैं जां, ये तो बता
चले आओ मुसाफिर आख़िरी साँसें बची हैं कुछ
मिले जो मुफ्त में उस चीज की क़ीमत नहीं होती
खुदा से ईद पे इस बार दुआ मांगूंगा
ये जमीं जब खून से तर हो गयी है
लोग नाहक क्यूँ कहेंगे बात कुछ होगी जरूर
किताबे जीस्त सारी ज़िंदगी मैं पढ़ नही पाया
वरक अब देखना चाहा तो दीमक चाट बैठे हैं
तूने बनाया, आदमी इंसां न बन सका
हमने तराशा, संग को भगवान कर दिया
वक़्त के नाखून .... पैने कब नहीं थे
पर मेरा चेहरा सलामत है अभी तक
अश्क हैं मेरे .......... निकलते हैं मगर तेरे लिए
फिर बता दुनिया में अब किस पर भरोसा मैं करूँ
जिस्म से कैसे जुदा कर दूं मैं जां, ये तो बता
मैं तो इस मैदान का कच्चा खिलाड़ी हूँ अभी
चले आओ मुसाफिर आख़िरी साँसें बची हैं कुछ
तुम्हारी दीद हो जाती तो खुल जातीं मेरे आँखें
मिले जो मुफ्त में उस चीज की क़ीमत नहीं होती
हुई है क़द्र हर इक सांस की, जब वक़्त आया है
खुदा से ईद पे इस बार दुआ मांगूंगा
गुनाह जो भी किये उनकी सज़ा मांगूंगा
हमें बनाया है इन्सां तो रहने दे इन्सां
मैं अम्न और अमां की भी रजा मांगूंगा
मेरा उसूल है, मैं सच के साथ रहता हूँ
मुझे इसी की सजा बारहा मिली क्यूँ है
शुक्रिया उसका जो मुझको दे रहा गम बारहा
है बना मेरा यकीं........भूला नही है वो मुझे
कही ईसा, कहीं मौला, कहीं भगवान रहते हैं
हमारे हाल से शायद सभी अंजान रहते हैं
चले आये, तबीयत आज भारी सी लगी अपनी
सुना था आपकी बस्ती में कुछ इंसान रहते हैं
भरोसा कर लिया दरिया पे तो मौजों से क्या डरना
भले मिट जाएगा खुद, पर समन्दर से मिलाएगा
न टोपी है ..... न दाढी है .....तिवारी ख़ाक शायर है
वो अपने नाम के आगे तखल्लुस भी नहीं लिखता
घास लेकर लडकियाँ चलती नही है
जाने क्यूँ बकरा बने फिरते हैं लड़के
जीतते हैं वो, डटे रहते हैं जो अह्वाल पर
पत्तियाँ सूखी हुई रुकती नही हैं डाल पर
बढ़ाओ हाँथ भर दो मांग में सिन्दूर, गर दम है
तुम्हारे पास जो भी दिख रहीं खुशियाँ, कुंवारी हैं
हिकारत की नजरों से जो देखते थे
मिले मुस्कराकर तो शक लाज़िमी था
जब तुम्हे देखूं नही तो खिड़कियों को तोडती हो
देखता हूँ तो तुनक कर मुह मुझीसे मोड़ती हो
सामने खिड़की के आकर बाल अपने खोलती हो
तुम बिना बोले ही इतना झूठ कैसे बोलती हो ?
मत रखो ज़ज्बात अपने रोक कर
अश्क बह जाएँ तो मिलता है सुकूं
ज़िंदगी में उलझनों से ... ज़िंदगी रुकती नही
जाल में अपने कोई मकड़ी कभी फंसती नही
गर मुहब्बत ... बेवफा होती नही
आज हर दिल की सदा होती नही
ऐसी तरक़ीब कोई दोस्त .... बताये मुझको
नीद भर सो लूँ, कोई ख़्वाब न आये मुझको
मुसलसल घूस ही खाता रहा जो
उसे तनखाह तो कम ही लगेगी
लहू पीने की आदत पड़ चुकी हो
कहाँ तब प्यास...पानी से बुझेगी
इक कली को मुस्कराकर फूल बनते देख कर
बागबां को फिक्र मुस्तकबिल की उसके हो गयी
जाने किस गुलदान में जाकर सजेगी लाडली
जो हंसीं सपने लिए गोंदी में उसकी सो गयी
बेसहारों का मुझे जब से सहारा मिल गया
डूबती कश्ती को लगता है किनारा मिल गया
यूँ रूठे हैं जैसे हों किस्मत हमारी
न ये मानते हैं...न वो मानती है
दोस्तों पर तो शराफत का असर होता नहीं
इसलिए मैं आज आया हूँ उतर औकात पर
अगर रिश्तों में हो तल्खी तो चुप हो बैठना बेहतर
गड़े मुर्दे उखाडोगे ............. तो बदबू फ़ैल जायेगी
किसी की कमनसीबी पर चहकना है नहीं अच्छा
किसी की कब्र पर लोबान ..की खुशबू नहीं भाती
क़भी जब हम तेरी यादों से रिश्ता जोड़ लेते हैं
मेरे आंसू मेरी आँखों से ..... रिश्ता तोड़ लेते हैं
बंद कर देना खुली आँखों को मेरी आके तुम
अक्स तेरा देख कर ... कह दे न कोई बेवफा
एक छोटी सी यही उम्मीद मुझको रह गयी
अश्क हों तेरे मगर निकलें मेरी आँखों से ही
सीप सी आँखों में मोती सा है जो ठहरा हुआ
देख लेता हूँ तो आंसू बन टपकता है वही
बेसहारों का मुझे जब से सहारा मिल गया
डूबती कश्ती को मेरी ज्यूँ किनारा मिल गया
जरूरत हो अगर तो मुझसे मेरी जान ले लेना
मगर ऐ दोस्त तुम मुझसे कभी मत माँगना माफी
शुक्रिया उसका जो देता ही रहा गम बारहा
वो मुझे भूला नही, होता रहा मुझको यकीं
प्यार हो क़मरो समंदर सा, नहीं चलता है जोर
क्या हुआ हासिल, पड़ा साहिल जो घेरा डालकर
दिख रही है आज यूँ हर इक किरन हारी थकी
घर से मंजिल तक उसे माहौल गन्दा ही मिला
साथ ही रहते रहे जो कल तलक साये सा मेरे
वक्त क्या बदला, मेरे साये से भी कतरा रहे हैं
ज़िंदगी की खोज में खुद खो गयी है ज़िंदगी
एक वीराना बिछा कर....सो गयी है ज़िंदगी
कहकहों की आंच को....... तन्हाइयाँ सहती रहीं
और आँखें आंसुओं से .......मशविरा करती रहीं
इक रियाजे फन यही उनको सलामत रख सका
कतराए खूं से ही जख्मे दिल को वो भरती रहीं
एक भी मौका न दो जो दोस्त हैं दुश्मन बनें
दुश्मनों को लाख मौके दो, तुम्हारे हो सकें
दुआ बारिश की करते हो मगर छतरी नहीं रखते
भरोसा है नहीं तुमको खुदा पर क्या जरा सा भी
शराफत को कभी तुम बुजदिली का नाम मत देना
दबे जब तक नहीं घोडा तमंचा इक खिलौना है
है कोई प्यारा तो उसको वक़्त अपना दीजिये
है यही इक शै जो वापस कर नहीं सकता कोई
देख उनको चश्मे नम मैं खुश हुआ हूँ आज यूँ
है अभी उम्मीदे उल्फत कायम अपने दरमियां
खुर्शीद का शरफ है उसके करम से कायम
खुद को जला जला के करता है उजाला वो
मरहम की तासीर ...... लगाने वाले के हांथों में है
हाँथ अगर घायल करने वाले के हों, तो क्या कहना
सर पे जिसके आसमां है पाँव के नीचे जमीं
इस जहां का है वही मालिक, वही तो आप हैं
माँ की परिभाषा तो बस इतने से समझो
"मैंने ममता का गीला आँचल देखा है "
माता पिता बहन भाई सच्चे रिश्ते हैं
बाकी रिश्तों को इनका क़ायल देखा है
बद्दुआ संतान को इक माँ कभी देती नहीं
धूप से छाले मिले जो छाँव बैठी है सहेज
प्रसव पीड़ा रात की पहुँची चरम पर
नए दिन का है हमें भी इंतज़ार अब
हौसला देती रहीं....मुझको मेरी बैसाखियाँ
सर उन्ही के दम पे सारी मंजिलें होती रहीं
बहुत तडपाया मुझे सोने नहीं देता था जालिम
जमेगी महफ़िल वहीं पर अब जहाँ वो दफ्न होगा
उन्हें छू के आया जो झोंका हवा का
महक वाह! अब तक बसी है फिजां में
नहीं है आसमां माफिक लगी परवाज़ पर बंदिश
कफस में खुद ब खुद आकर के सारे बाज बैठे हैं
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनकी परिभाषा मुश्किल है
ऐसे रिश्तों का आधार समझता केवल अपना दिल है
खुली आँखों से गर देखो
तो सपने सच भी होते हैं
चैन से रहने दे मेरे दिल वग़रना
बंद कर दूंगा मैं तेरी धड़कने ही
ज़िंदगी जब जख्म पर दे जख्म तो हंस कर हमें
आजमाइश की हदों को .....आजमाना चाहिए
देश को बर्बाद करके ही रहेंगे रहनुमा सब
अपने अपने फार्मूले पर ये देखो अड़ गए हैं
इत्र के तालाब से दुर्गन्ध कैसी आ रही है
शायद इसमें डूबकर इंसान गंदे सड़ गए हैं
बिना सोचे हर इक ख्वाहिश पे उनकी हाँ किया मैंने
मुझे ही क़त्ल करने आ गए कैसे मना कर दूं
जुगनुओं की रोशनी से तीरगी हटती नहीं
आइने की सादगी से झूठ की पटती नहीं
ज़िंदगी में गम नहीं फिर ज़िंदगी में क्या मजा
सिर्फ खुशियों के सहारे ज़िंदगी कटती नहीं
अगर इंसान मिल जाए मुकम्मल....
तो सर पत्थर के आगे क्यूँ झुकाऊँ
जेब में हो मॉल फिर तो स्वागतम् ही स्वागतम्
एक दिन तुम नाशिता घर से निकल कर देख लो
ज़माने की निगाहों में चढूं मैं ये नहीं चाहूँ
खुदाया काश मैं दिल में किसी इक के उतर जाऊँ
दिल के ज़ज्बात मेरे उसको बताऊँ कैसे
रूठता ही नहीं जो उसको मनाऊँ कैसे
इन झील सी आँखों में है एक दिन उतरना
डर डूबने का हो क्यूँ है एक दिन तो मरना
याद रह जायेंगे ये बचपन के दिन ही लाडली
काट लूँगा उम्र बाकी बस इन्ही को सोच कर
यूँ तो नज़र तुम्हारी रहती है मेरी जानिब
मिलती है जब निगाहें हो जाते हो संजीदा
ऐ ज़िंदगी तुझी में हम ढूंढते हैं सब कुछ
तू है कि साथ मेरे यूँ खेल खेलती है.
धूप की आदत पडी है,...... अब कोई छाया न दे
मुफलिसी रास आ गयी अब कोई सरमाया न दे
एक दिन मुझको किसी ने यूँ ही शायर कह दिया
दूसरे दिन मैं गज़ल पर(*_*)तब्सिरा करने लगा
आज कल बादल भी अपने मन की करते हैं
छांट लेते हैं मोहल्ला ///||\\\ फिर बरसते हैं
हम गिला करते रहे, रुकते रहे, चलते रहे
बात तो कुछ है जो इक दूजे को हम सहते रहे
बोलता है झूठ आईना ..... तो बोले
आप खुद को देखिये मेरी नज़र से
लाख कर लीं कोशिशें मंजिल नहीं मिलती मुझे
दूसरों के वास्ते ............... मैं रास्ता बनता रहा
मैं किनारे की तरफ रुख ही करूँ क्यूँ
यही सच है कि पत्थर भी नहीं होता है पत्थर दिल
नमी के जोर पर उनपर भी काई उग ही आती है
बदन में खूं नहीं है जब
नसें क्या ख़ाक उभरेंगी
लहरों ने जब बार बार चूमा उसको
धीरे से पत्थर पानी में उतर गया
आपकी खुशियाँ बढ़ें दिन रात दूनी चौगुनी
इस लिए मैं दूर खुद को आप से करता गया
क्या पता रस्ते में ही मंजिल जो मिल जाये कहीं
इस लिए मैं ज़िंदगी भर भागता फिरता रहा
तुम्हारी बेरुखी नेमत है मुझको
सफ़र आसां रहेगा ज़िंदगी का
गाँव में लडकियाँ अब यूँ सजने लगीं
जैसे झोपड़ के ऊपर महल हों बने
शहर को दुल्हन बनाने के लिए
जाने कितने गाँव बेवा हो गए
इम्तिहाने मौत से मुझको गुजरना है अभी
लाज़िमी है क्यूँ कि दुनिया के लिए जिंदा हूँ मैं
आपने देकर थपेड़े ...... काम आसां कर दिया
यूँ भी बादल को बरसना था, भले कुछ देर बाद
आस तो टूटी है लेकिन
सांस अब तक चल रही है
हम रहे लड़ते अभी तक खुद हमारी रूह से
आपसे तर्के त'आलुक का हुआ अब फैसला
चाल ऐसी चल गया शातिर जुआरी की तरह
खर्च उसपर हो गया मैं .... रेजगारी की तरह
है अगर तुझको तवक्को मैं बिछड़ कर ग़मज़दा हूँ
तो मुझे समझा नहीं तू, गम रहेगा बस इसी का
गैरपुख्ता ज़िंदगी के वास्ते
मौत से लड़ते रहे ता'उम्र हम
दुश्मनी की हद .... दिखानी है अगर
ज़िक्र भी मत कर, नज़र अंदाज़ कर
मंजिलें होती हैं कुछ ऐसी कि जिन की राह में
दम निकल जाए अगर तो फख्र की ही बात है
आपको खुश देखकर, . मुझको खुशी दूनी हुई
क्या हुआ जो आप बिन दुनिया मेरी सूनी हुई
ज़िस्म से मेरे तडपता दिल कोई तो खींच लो
मैं बगैर इसके भी जी लूँगा मुझे अब है यकीं
जब किसी की बेवफाई पर करे रोने का दिल
आँख से आँसू नहीं ... तेज़ाब बहना चाहिए
मेरी उल्फत को तू मजबूरी समझना बंद कर
छोड़ तो आया हूँ मैं कुनबा, अना के वास्ते
था गुमां मुझको सिखा दूंगा उसे भी तैरना
पार जा पंहुचा वो मेरी लाश पर ही बैठ कर
है मेरे ज़िस्म में तू खून ओ पानी की तरह
याद रक्खूँगा तुझे गुजरी जवानी की तरह
मैंने अपने सपने जिनको सौंप दिए थे
वो तो आज हक़ीक़त में भी झूठे निकले
गम निभाता है खुशी का साथ ऐसे
रोशनी का अक्स जैसे है अँधेरा
मौत ने मुझको तवज्जो दी नहीं
इसलिए हर हाल में जीता हूँ मैं
है खबर अच्छी कि आजा मुह तेरा मीठा करें
नफरतें तेरी हुई हैं बा'खुशी दिल को कुबूल
रो पड़ा बच्चा .... खिलौना तोड़कर
और बड़ों को कुछ नसीहत हो गयी
हक तुझे है खेल मुझसे इक खिलौना जानकर
और मेरा फ़र्ज़ है ........ मैं टूट कर हँसता रहूँ
मुस्कराहट अपने होठों पर सजाने के लिए
फूट कर रोता रहा हूँ जाने कितने साल तक
चढ़े सूरज का मुस्तक़बिल यही है
किसी छिछली नदी में डूब जाना
नहीं छूटे हैं उसके दाग अबतक
बहुत दिन चाँद को धोया नदी ने
ले रहा है तू खुदाया इम्तिहां दर इम्तिहां
पर सियाही ज़िंदगी की ख़त्म क्यूँ होती नहीं
भरो ऊंची उड़ाने पर ........ हमेशा याद ये रखना
तुम्हे फिर लौट कर वापस जमीं पर पाँव रखना है
जिस्म की सारी रगें तो स्याह खूं से भर गयी हैं
फक्र से कहते हैं फिर भी हम कि हम इंसान हैं
अश्क़ ही बहते हैं क्यूँ गम और खुशी में ऐ खुदा
दिल तड़पता है तो खून आँखों से बहता क्यूँ नहीं
कही ईसा, कहीं मौला, कहीं भगवान रहते हैं
हमारे हाल से शायद सभी अंजान रहते हैं
चले आये, तबीयत आज भारी सी लगी अपनी
सुना था आपकी बस्ती में कुछ इंसान रहते हैं
भरोसा कर लिया दरिया पे तो मौजों से क्या डरना
भले मिट जाएगा खुद, पर समन्दर से मिलाएगा
न टोपी है ..... न दाढी है .....तिवारी ख़ाक शायर है
वो अपने नाम के आगे तखल्लुस भी नहीं लिखता
जिस्म से कैसे जुदा कर दूं मैं जां, ये तो बता
मैं तो इस मैदान का कच्चा खिलाड़ी हूँ अभी
चले आओ मुसाफिर आख़िरी साँसें बची हैं कुछ
तुम्हारी दीद हो जाती तो खुल जातीं मेरे आँखें
मिले जो मुफ्त में उस चीज की क़ीमत नहीं होती
हुई है क़द्र हर इक सांस की, जब वक़्त आया है
खुदा से ईद पे इस बार दुआ मांगूंगा
गुनाह जो भी किये उनकी सज़ा मांगूंगा
हमें बनाया है इन्सां तो रहने दे इन्सां
मैं अम्न और अमां की भी रजा मांगूंगा
ये जमीं जब खून से तर हो गयी है
ज़िंदगी कहते हैं बेहतर हो गयी है
हाँथ पर मत खींच बेमतलब लकीरें
मौत हर पल अब मुक़द्दर हो गयी है
लोग नाहक क्यूँ कहेंगे बात कुछ होगी जरूर
देख ही लेते हैं चल कर चाँद के उस पार हम
किताबे जीस्त सारी ज़िंदगी मैं पढ़ नही पाया वरक अब देखना चाहा तो दीमक चाट बैठे हैं
तूने बनाया, आदमी इंसां न बन सका
हमने तराशा, संग को भगवान कर दिया
वक़्त के नाखून .... पैने कब नहीं थे
पर मेरा चेहरा सलामत है अभी तक
अश्क हैं मेरे .......... निकलते हैं मगर तेरे लिए
फिर बता दुनिया में अब किस पर भरोसा मैं करूँ
याद आती है तुम्हारी तो सिहर जाता हूँ मैं
देख कर साया तुम्हारा अब तो डर जाता हूँ मैं
अब न पाने की तमन्ना है न है खोने का डर
जाने क्यूँ अपनी ही चाहत से मुकर जाता हूँ मैं
देख कर साया तुम्हारा अब तो डर जाता हूँ मैं
अब न पाने की तमन्ना है न है खोने का डर
जाने क्यूँ अपनी ही चाहत से मुकर जाता हूँ मैं
मैं सुपुर्दे ख़ाक हूँ मुझको जलाना छोड़ दे
कब्र पर मेरी तू उसके साथ आना छोड़ दे
हो सके गर तू खुशी के अश्क पीना सीख ले
या तू आँखों में तेरी काजल लगाना छोड़ दे
कब्र पर मेरी तू उसके साथ आना छोड़ दे
हो सके गर तू खुशी के अश्क पीना सीख ले
या तू आँखों में तेरी काजल लगाना छोड़ दे
जिस्म से कैसे जुदा कर दूं मैं जां, ये तो बता
मैं तो इस मैदान का कच्चा खिलाड़ी हूँ अभी
चले आओ मुसाफिर आख़िरी साँसें बची हैं कुछ
तुम्हारी दीद हो जाती तो खुल जातीं मेरे आँखें
मिले जो मुफ्त में उस चीज की क़ीमत नहीं होती
हुई है क़द्र हर इक सांस की, जब वक़्त आया है
खुदा से ईद पे इस बार दुआ मांगूंगा
गुनाह जो भी किये उनकी सज़ा मांगूंगा
हमें बनाया है इन्सां तो रहने दे इन्सां
मैं अम्न और अमां की भी रजा मांगूंगा
मेरा उसूल है, मैं सच के साथ रहता हूँ
मुझे इसी की सजा बारहा मिली क्यूँ है
ये जमीं जब खून से तर हो गयी है
ज़िंदगी कहते हैं बेहतर हो गयी है
हाँथ पर मत खींच बेमतलब लकीरें
मौत हर पल अब मुक़द्दर हो गयी है
ज़िंदगी कहते हैं बेहतर हो गयी है
हाँथ पर मत खींच बेमतलब लकीरें
मौत हर पल अब मुक़द्दर हो गयी है
लोग नाहक क्यूँ कहेंगे बात कुछ होगी जरूर
देख ही लेते हैं चल कर चाँद के उस पार हम
देख ही लेते हैं चल कर चाँद के उस पार हम
मेरे हाथों से मेरी तकदीर भी वो ले गया
आज अपनी आख़िरी तस्वीर भी वो ले गया
नहीं जो कह सका ताजिन्दगी, कहना है अब मुझको
जुबां गर बंद हो जाए .... तो ... पढ़ लेना मेरी आँखें
जुबां गर बंद हो जाए .... तो ... पढ़ लेना मेरी आँखें
दिल की बात लबों पर लाना मुश्किल है
सब को सच्ची राह दिखाना मुश्किल है
सूरज दुनिया को .... उजियारा देता है
चमगादड़ को ये समझाना मुश्किल है
सब को सच्ची राह दिखाना मुश्किल है
सूरज दुनिया को .... उजियारा देता है
चमगादड़ को ये समझाना मुश्किल है
ग़मों से क्यूँ परेशां हो बशर तुम
न होती धूप तो साये न होते
न होती धूप तो साये न होते
सफलता मुस्कराती है अकेले भी
सरे महफ़िल रुला देती है नाक़ामी
सरे महफ़िल रुला देती है नाक़ामी
मुझे उस नीद का . नुस्खा बता दो
न आयें ख़्वाब जिसमे और सो लूं
न आयें ख़्वाब जिसमे और सो लूं
तुम्हे अब भूल सकता हूँ खुशी से
पता अपना मुझे याद आ गया है
पता अपना मुझे याद आ गया है
है बना मेरा यकीं........भूला नही है वो मुझे
कही ईसा, कहीं मौला, कहीं भगवान रहते हैं
हमारे हाल से शायद सभी अंजान रहते हैं
चले आये, तबीयत आज भारी सी लगी अपनी
सुना था आपकी बस्ती में कुछ इंसान रहते हैं
भरोसा कर लिया दरिया पे तो मौजों से क्या डरना
भले मिट जाएगा खुद, पर समन्दर से मिलाएगा
न टोपी है ..... न दाढी है .....तिवारी ख़ाक शायर है
वो अपने नाम के आगे तखल्लुस भी नहीं लिखता
घास लेकर लडकियाँ चलती नही है
जाने क्यूँ बकरा बने फिरते हैं लड़के
जीतते हैं वो, डटे रहते हैं जो अह्वाल पर
पत्तियाँ सूखी हुई रुकती नही हैं डाल पर
बढ़ाओ हाँथ भर दो मांग में सिन्दूर, गर दम है
तुम्हारे पास जो भी दिख रहीं खुशियाँ, कुंवारी हैं
हिकारत की नजरों से जो देखते थे
मिले मुस्कराकर तो शक लाज़िमी था
जब तुम्हे देखूं नही तो खिड़कियों को तोडती हो
देखता हूँ तो तुनक कर मुह मुझीसे मोड़ती हो
सामने खिड़की के आकर बाल अपने खोलती हो
तुम बिना बोले ही इतना झूठ कैसे बोलती हो ?
अश्क बह जाएँ तो मिलता है सुकूं
ज़िंदगी में उलझनों से ... ज़िंदगी रुकती नही
जाल में अपने कोई मकड़ी कभी फंसती नही
गर मुहब्बत ... बेवफा होती नही
आज हर दिल की सदा होती नही
ऐसी तरक़ीब कोई दोस्त .... बताये मुझको
नीद भर सो लूँ, कोई ख़्वाब न आये मुझको
मुसलसल घूस ही खाता रहा जो
उसे तनखाह तो कम ही लगेगी
लहू पीने की आदत पड़ चुकी हो
कहाँ तब प्यास...पानी से बुझेगी
इक कली को मुस्कराकर फूल बनते देख कर
बागबां को फिक्र मुस्तकबिल की उसके हो गयी
जाने किस गुलदान में जाकर सजेगी लाडली
जो हंसीं सपने लिए गोंदी में उसकी सो गयी
बेसहारों का मुझे जब से सहारा मिल गया
डूबती कश्ती को लगता है किनारा मिल गया
यूँ रूठे हैं जैसे हों किस्मत हमारी
न ये मानते हैं...न वो मानती है
दोस्तों पर तो शराफत का असर होता नहीं
इसलिए मैं आज आया हूँ उतर औकात पर
अगर रिश्तों में हो तल्खी तो चुप हो बैठना बेहतर
गड़े मुर्दे उखाडोगे ............. तो बदबू फ़ैल जायेगी
किसी की कमनसीबी पर चहकना है नहीं अच्छा
किसी की कब्र पर लोबान ..की खुशबू नहीं भाती
क़भी जब हम तेरी यादों से रिश्ता जोड़ लेते हैं
मेरे आंसू मेरी आँखों से ..... रिश्ता तोड़ लेते हैं
बंद कर देना खुली आँखों को मेरी आके तुम
अक्स तेरा देख कर ... कह दे न कोई बेवफा
एक छोटी सी यही उम्मीद मुझको रह गयी
अश्क हों तेरे मगर निकलें मेरी आँखों से ही
सीप सी आँखों में मोती सा है जो ठहरा हुआ
देख लेता हूँ तो आंसू बन टपकता है वही
बेसहारों का मुझे जब से सहारा मिल गया
डूबती कश्ती को मेरी ज्यूँ किनारा मिल गया
जरूरत हो अगर तो मुझसे मेरी जान ले लेना
मगर ऐ दोस्त तुम मुझसे कभी मत माँगना माफी
शुक्रिया उसका जो देता ही रहा गम बारहा
वो मुझे भूला नही, होता रहा मुझको यकीं
प्यार हो क़मरो समंदर सा, नहीं चलता है जोर
क्या हुआ हासिल, पड़ा साहिल जो घेरा डालकर
दिख रही है आज यूँ हर इक किरन हारी थकी
घर से मंजिल तक उसे माहौल गन्दा ही मिला
साथ ही रहते रहे जो कल तलक साये सा मेरे
वक्त क्या बदला, मेरे साये से भी कतरा रहे हैं
ज़िंदगी की खोज में खुद खो गयी है ज़िंदगी
एक वीराना बिछा कर....सो गयी है ज़िंदगी
कहकहों की आंच को....... तन्हाइयाँ सहती रहीं
और आँखें आंसुओं से .......मशविरा करती रहीं
इक रियाजे फन यही उनको सलामत रख सका
कतराए खूं से ही जख्मे दिल को वो भरती रहीं
एक भी मौका न दो जो दोस्त हैं दुश्मन बनें
दुश्मनों को लाख मौके दो, तुम्हारे हो सकें
दुआ बारिश की करते हो मगर छतरी नहीं रखते
भरोसा है नहीं तुमको खुदा पर क्या जरा सा भी
शराफत को कभी तुम बुजदिली का नाम मत देना
दबे जब तक नहीं घोडा तमंचा इक खिलौना है
है कोई प्यारा तो उसको वक़्त अपना दीजिये
है यही इक शै जो वापस कर नहीं सकता कोई
देख उनको चश्मे नम मैं खुश हुआ हूँ आज यूँ
है अभी उम्मीदे उल्फत कायम अपने दरमियां
खुर्शीद का शरफ है उसके करम से कायम
खुद को जला जला के करता है उजाला वो
मरहम की तासीर ...... लगाने वाले के हांथों में है
हाँथ अगर घायल करने वाले के हों, तो क्या कहना
सर पे जिसके आसमां है पाँव के नीचे जमीं
इस जहां का है वही मालिक, वही तो आप हैं
माँ की परिभाषा तो बस इतने से समझो
"मैंने ममता का गीला आँचल देखा है "
माता पिता बहन भाई सच्चे रिश्ते हैं
बाकी रिश्तों को इनका क़ायल देखा है
बद्दुआ संतान को इक माँ कभी देती नहीं
धूप से छाले मिले जो छाँव बैठी है सहेज
प्रसव पीड़ा रात की पहुँची चरम पर
नए दिन का है हमें भी इंतज़ार अब
हौसला देती रहीं....मुझको मेरी बैसाखियाँ
सर उन्ही के दम पे सारी मंजिलें होती रहीं
बहुत तडपाया मुझे सोने नहीं देता था जालिम
जमेगी महफ़िल वहीं पर अब जहाँ वो दफ्न होगा
उन्हें छू के आया जो झोंका हवा का
महक वाह! अब तक बसी है फिजां में
नहीं है आसमां माफिक लगी परवाज़ पर बंदिश
कफस में खुद ब खुद आकर के सारे बाज बैठे हैं
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनकी परिभाषा मुश्किल है
ऐसे रिश्तों का आधार समझता केवल अपना दिल है
खुली आँखों से गर देखो
तो सपने सच भी होते हैं
चैन से रहने दे मेरे दिल वग़रना
बंद कर दूंगा मैं तेरी धड़कने ही
ज़िंदगी जब जख्म पर दे जख्म तो हंस कर हमें
आजमाइश की हदों को .....आजमाना चाहिए
देश को बर्बाद करके ही रहेंगे रहनुमा सब
अपने अपने फार्मूले पर ये देखो अड़ गए हैं
इत्र के तालाब से दुर्गन्ध कैसी आ रही है
शायद इसमें डूबकर इंसान गंदे सड़ गए हैं
बिना सोचे हर इक ख्वाहिश पे उनकी हाँ किया मैंने
मुझे ही क़त्ल करने आ गए कैसे मना कर दूं
जुगनुओं की रोशनी से तीरगी हटती नहीं
आइने की सादगी से झूठ की पटती नहीं
ज़िंदगी में गम नहीं फिर ज़िंदगी में क्या मजा
सिर्फ खुशियों के सहारे ज़िंदगी कटती नहीं
अगर इंसान मिल जाए मुकम्मल....
तो सर पत्थर के आगे क्यूँ झुकाऊँ
जेब में हो मॉल फिर तो स्वागतम् ही स्वागतम्
एक दिन तुम नाशिता घर से निकल कर देख लो
ज़माने की निगाहों में चढूं मैं ये नहीं चाहूँ
खुदाया काश मैं दिल में किसी इक के उतर जाऊँ
दिल के ज़ज्बात मेरे उसको बताऊँ कैसे
रूठता ही नहीं जो उसको मनाऊँ कैसे
इन झील सी आँखों में है एक दिन उतरना
डर डूबने का हो क्यूँ है एक दिन तो मरना
याद रह जायेंगे ये बचपन के दिन ही लाडली
काट लूँगा उम्र बाकी बस इन्ही को सोच कर
यूँ तो नज़र तुम्हारी रहती है मेरी जानिब
मिलती है जब निगाहें हो जाते हो संजीदा
ऐ ज़िंदगी तुझी में हम ढूंढते हैं सब कुछ
तू है कि साथ मेरे यूँ खेल खेलती है.
धूप की आदत पडी है,...... अब कोई छाया न दे
मुफलिसी रास आ गयी अब कोई सरमाया न दे
एक दिन मुझको किसी ने यूँ ही शायर कह दिया
दूसरे दिन मैं गज़ल पर(*_*)तब्सिरा करने लगा
आज कल बादल भी अपने मन की करते हैं
छांट लेते हैं मोहल्ला ///||\\\ फिर बरसते हैं
हम गिला करते रहे, रुकते रहे, चलते रहे
बात तो कुछ है जो इक दूजे को हम सहते रहे
बोलता है झूठ आईना ..... तो बोले
आप खुद को देखिये मेरी नज़र से
लाख कर लीं कोशिशें मंजिल नहीं मिलती मुझे
दूसरों के वास्ते ............... मैं रास्ता बनता रहा