मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है

ख़ुशी रोती है और हँसता है ग़म ऐसा भी होता है
हर इक जानिब से मैं दिल में ख़ुशी महसूस करता हूँ
ख़ुदा रखे सलामत तेरा ग़म ऐसा भी होता है
मक़ाम ऐसे भी आ जाते हैं अकसर राहे-उलफ़त में
ख़ुशी महसूस होती है न ग़म ऐसा भी होता है
ज़बाँ ख़ामोश रहती है अगर पासे-मुहब्बत से
तो आँखें खोल देती है भरम ऐसा भी होता है
वह लम्हे ‘आफ़ताब’ अकसर गुज़रते हैं मुहब्बत में
जो रोयें वो तो हो जाती है मेरी आँख नम ऐसा भी होता है