एक अनोखी प्रेम-कथा
उस रात वो अपनी माँ से फोन पर बात कर रहा था | करीब आधे घंटे बात करने के
बाद माँ ने फोन रखने से पहले बोला “वो दिविशा याद है? उसकी शादी की बात हो
रही है, हम लोगों का व्यू जानने के लिए बुलाया है लड़के के बारे में” |
“अच्छा, हो आइये आप लोग”
कहकर उसने फोन रख दिया | उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगा उसके बाद |
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लड़के के पापा का जब ट्रांसफर इस शहर में हुआ था तो वो शायद आठवीं में पढ़
रहा था | किराये का घर था | मकान मालिक की बेटी का नाम दिविशा था | वो भी
उसी क्लास में थी, उसी स्कूल में | बारहवीं तक दोनों साथ पढ़े | साथ
आते-जाते तो नहीं, पर शाम छत पर अक्सर साथ गुज़रती |
बाद में लड़का इंजीनियरिंग पढ़ने चला गया | दिविशा ने पढ़ाई उसी शहर में जारी
रखी | इस बीच लड़के का अपना घर बन गया , वो लोग नए घर में शिफ्ट हो गए |
फिर मिलना नहीं हुआ दिविशा से |
पर आज पहली बार लड़के को ना जाने क्यूँ, कुछ अलग सा महसूस हुआ | बार बार
दिविशा का चेहरा आँखों से सामने घूमने लगा | उसकी एक तस्वीर जो उसके बर्थडे
पर उसके साथ खीची गयी थी, उसने छुपा के अपनी डायरी में रखी हुई थी |
पूरी रात उसी फोटो को देखता रहा | सुबह झपकी आने से कुछ देर पहले उसे
रियलाइज हुआ कि वो तो दिविशा से प्यार करता है | पर कहना तो दूर पिछले
करीब चार सालों से उससे मिला भी नहीं है | पता नहीं वो भी उसके बारे में
ऐसा सोचती है या नहीं |
दिविशा को बता दिया गया था कि कुछ दिनों में लड़के वाले उसे देखने आने वाले
हैं | तब से वो बेचैन सी थी | कुछ अजीब सा ही लग रहा था उसे, पर उसे समझ
नहीं आ रहा था कि क्या कहे और क्या करे | तब से अक्सर शाम को वो छत पर खड़ी
रहती |
झपकी से उठते ही लड़के ने अपना बैग पैक किया और अपने घर चल दिया | मम्मी
पापा सरप्राइज॒ड थे , जो सालों में अपनी शक्ल नहीं दिखाता था, आज अचानक
उनके सामने खड़ा था | “फुरसत मिल गयी साहब" का ताना पापा से सुनने के बाद ,
वो सबसे पहले तैयार हुआ, कुछ खाया और फिर “दोस्त से मिलने जा रहा हूँ” कहके
बाहर जाने लगा |
दरवाज़ा पटकने से पहले आवाज़ आयी “आप ही लोग जाओ" |
शाम होने को थी, रोज़ की तरह दिविशा छत पर खड़ी कुछ सोच रही थी | कुछ देर
में उसे देखने लड़के वाले आ रहे थे | उसने आसामानी रंग का सूट पहन रखा था |
उदासी का रंग उसके गालों पर छाया हुआ था | ठीक पीछे के घर की छत से , जो
उसकी छत से लगी हुई थी, किसी के कूदने की आवाज़ हुई |
“तुम" कहते हुए वो घूमी |
“हाँ” |
“यहाँ क्या कर रहे हो, और ऐसे कूद के क्यूँ आ रहे हो, दरवाज़े से आते, कोई देख लेगा तो आफत आ जायेगी, और आज तो”
“तुम्हें देखने लड़के वाले आने वाले हैं"
“हाँ" कहते कहते उसके आँखों में आंसू आ गए जिसे छुपाने के लिए वो फिर एक बार गली में देखने लगी |
“सुनो"
“क्या है"
“मैं ये कह रहा था" कहते कहते लड़का उसके पास चला गया |
“कुछ मत कहो”
“सुनो तो"
“क्या है!!!!” कहते हुए लड़की उसकी तरफ घूमी, इस बार आंसू ना थमे, ना छुपे |
“कुछ नहीं" कहते हुए लड़के ने उसे बाहों में भर लिया | दिविशा फूट-फूट कर रोने लगी | थोड़ी देर बाद जब वो उससे अलग हुई तो हुए तो डरते हुए लड़के ने बोला ..
“सुनो, तुम बहुत खूबसूरत हो”
“डफर, बस यही बोलोगे”
“आई लव यू दिविशा"
“आई लव यू सुमित" |
इस बार दोनों की आँखों में आंसू थे |
“देर कर दी तुमने"
“कोई देर नहीं हुई, तुम इस लड़के को मना करो, मैं सबसे बात कर लूँगा"
“लड़का इतना तो पसंद आ गया है इन लोगो को, उसने भी शायद हाँ कर दी है, अब मुश्किल है"
“भाग चलें अभी"
“नहीं"
कोई नीचे से ऊपर आ रहा था | दिविशा डर गयी | उसकी मम्मी उसे नीचे बुलाने आयी थी | सुमित को वहाँ देखकर वो चौंक गयी |
“बेटा तुम , इतने दिनों बाद, कब आये , पता ही नहीं चला”
“हमेशा की तरह चोर दरवाजे से आंटी, पता कैसे चलता” उसने हँसने की कोशिश की |
“अभी भी नहीं सुधरे तुम, चलो अच्छा है, डिनर करके जाना, आज स्पेशल क्या है वो तो तुम्हें पता ही होगा”
“जी" कहने में उसने सारा जोर लगा दिया |
“अच्छा चलो अब नीचे तुम लोग, वो लोग आते ही होंगे , तुम्हारे मम्मी पापा भी आ रहे होंगे सुमित" |
“जी"
दोनों उनके पीछे जीने से उतरने लगे | आगे की सारी बातें आँखों से हो रही थी | ड्राइंग रूम से अब हँसने की आवाजें आने लगी थी | दिविशा की माँ एक बार फिर अंदर आयी और उसे बाहर ले जाने लगीं | उदासी का रंग गहरा भी हुआ और छिटक कर सुमित पर भी जा गिरा | वो उनके पीछे चल पड़ा और ड्राइंग रूम के दरवाजे पर पड़े परदे के ठीक पीछे रुक गया |
दिविशा ने परदे को पार किया |
“बेटा सबको नमस्ते करो"
कुछ मिनटों के लिए सन्नाटा छा गया | दिविशा ने हाथों से परदे को हटाकर सुमित को ड्राइंग रूम में खींच लिया |
सुमित के पापा दिविशा के पापा से कह रहे थे “साहब को बुला के बाँधने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता था, भाईसाहब |”
"मैडम भी कहाँ मान रही थी शादी के लिए इतनी आसानी से " दिविशा के पापा ने कहा |
सुमित की मम्मी ने उठकर दिविशा और सुमित को गले से लगा लिया और सुमित से
बोलीं "डायरी में फोटो तो संभाल ली, डायरी भी तो संभाल के रखनी चाहिए थी
ना"
आंसू अभी भी थे आँखों में उनकी, बस उनका कारण बदल चुका था |
कुछ लव-स्टोरी बिना लफड़े-लोचे के भी पूरी हो जाती हैं |