कारीगरी है जिनकी यहाँ कोठियों के बीच

हारे थके पड़े हैं कहीं सिसकियों के बीच
हँसने का कोई लुत्फ़ न रोने का कुछ मज़ा
यूँ भी तो क़हक़हे हैं यहाँ सिसकियों के बीच
ये ताक-झाँक छोड़िए अन्दर तो आइए
दरवाज़ा किसलिए है मेरी खिड़कियों के बीच
मरने के वक़्त ही सही हासिल तो कुछ हुआ
थामे हुए हैं सर वो मेरा हिचकियों के बीच
उतरा हो आसमान से फूलों में जैसे चाँद
वो यूँ खड़ा हुआ है कई लड़कियों के बीच
क्या पूछते हैं आप ये 'परवाज़' कौन है
उभरा है एक नाम यहाँ सुर्ख़ियों के बीच