दिल-ए-बेहाल पर क्यूँ उसे तरस नही आया
वो अपना है जो मुझे कभी समझ नही पाया |
वो मेरा हमदम नही तो फिर दिल-ए-बसर क्या है
जो रुख़ मोड़ दे हवा का तो फिर नज़र क्या है
दिल-ए-बेताब की दवा है उसकी एक मुस्कुराहट
ना पूछ उसकी गलियो मे जाने का सबब क्या है
यार जो भी मिला दिल जला कर गया
खाक में मेरी हस्ती मिला कर गया
प्यास जिसकी सदा मैं बुझाता रहा
जहर-ए-कातिल मुझे वो पिला कर गया
नाज़ उसकी वफ़ा पर मुझे था मगर
तीर वो भी जिगर पर चला कर गया
तलाश करता था कभी जो मुझे हर गली
नज़र वो आज मुझसे बचा कर गया
मानता था सहारा जो हरदम मुझे
बेसहारा मुझे वो बना कर गया
नींद आगोश में जिसकी आने लगी
मौत की नींद मुझ को सुला कर गया
आरज़ू थी “यारो” किसी की मुझे,
ख्वाब मेरे वही तो मिटा कर गया
मोहब्बातों में अगर कोई रस्म ओ राह ना हो
सुकून तबाह ना हो, ज़िंदगी गुनाह ना हो
कुछ अएतेदाल भी लाज़िम है दिल लगी के लिए
किसी से प्यार अगर हो तो बेपनाह ना हो
इस एहतेयात से मैं तेरे साथ चलता हूँ
तेरी निगाह से आगे मेरी निगाह ना हो
मेरा वजूद है सचाईयों का आईना
यह और बात के मेरा कोई गवाह ना हो
आईना क्यू ना दूं के तमाशा कहे जिसे
ऐसा कहा से लाउ के तुझसा कहे जिसे
हसरत ने ला रखा तेरी बाज़म-ए-ख़याल मे
गुलदस्ता-ए-निगाह सुवेदा कहे जिसे
फूँका है किसने गोशे मोहब्बत में आए खुदा
अफसुन-ए-इंतज़ार तमन्ना कहे जिसे
सर पर हजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए
वो एक मुश्त-ए-खाक के सहारा कहे जिसे
है चश्म-ए-तार मे हसरत-ए-दीदार से निहा
शौक़-ए-ईना गुसेख्ता दरिया कहे जिसे
दरकार है शिगुफ्तन-ए-गुल हए ऐश को
सब_ह-ए-बहार पबा-ए-मिना कहे जिसे
“ग़ालिब” बुरा ना मान जो वैज बुरा कहे
ऐसा भी कोइ है के सब अच्छा कहे जिसे
हम मदहोश हुवे जा रहे थे
जैसे जैसे वो करीब आ रहे थे
लगा जैसे पल थम सा गया है
कोई अपना अब मिल जो गया है ..
ठंडी फुहार जैसे कुछ कह रही थी..
चांदनी जब उसके केशों को छु बह रही थी..
रात में भी सुन्हेरी धुप खिल आई थी…
सितारों की महफ़िल मैं रौशनी नयी आई थी…
उसकी अदाओं से सितारें भी मदहोश हो रहे थे..
चाँद शर्मा रहा था और वक़्त खामोश हो रहा था..
उस पल हर लम्हा थम जाना चाहता था..
उन्हें देखने चाँद भी ज़मीन पे आना चाहता था..
हमेशा दिल में रहता है कभी गोया नहीं जाता
जिसे पाया नहीं जाता , उसे खोया नहीं जाता
कुछ ऐसे ज़ख्म हैं जिनको सभी शादाब रखते हैं
कुछ ऐसे दाग़ हैं जिन को कभी धोया नहीं जाता
अजब सी गूँज उठती है दरों – दीवार से हर दम
ये उजड़े ख्वाब का घर यहाँ सोया नहीं जाता
बहुत हँसने की आदत का यही अंजाम होता है
कि हम रोना भी चाहें तो कभी रोया नहीं जाता
ज़रा सोचें ! ये दुनिया किस क़दर बेरंग हो जाती
अगर आँखों में कोई ख्वाब ही बोया नहीं जाता
न जाने अब मुहब्बत पर मुसीबत क्या पड़ी आलम
कि अहले-दिल से दिल का बोझ भी ढोया नहीं जाता
ये मोजाज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे
के सुंग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आए मुझे
वो मेहेरबाँ है तो इकरार क्यू नही करता
वो बदगुमान है तो सौ बार आज़माए मुझे
वो मेरा इश्क है सारे जहाँ को है मालूम
दगा करे जो किसीसे तो शर्म आए मुझे
कभी साथ देते हो तो काभ हाथ छुड़ाते हो,
जाने कौन सी मजबूरी है यह की तुम हर बात छुपाते हो,
अपनी तो हसरत है यह की तुमहरा प्यार पाना
मगर तुम हो जो की बस अपना गुम छुपाते हो,
यह तन्हाई का ही कसूर है,
नये रिश्तो से हाथ क्यों छुड़ाते हो,
इन बातो का मैं क्या करू,
की एक पल हसते हो तो दूसरे पल रुलाते हो,
कभी खामोश रहते हो कभी फिर मुस्कुराते हो,
जाने-अंजाने मे तुम ना जाने कितने चेहरे दिखाते हो,
अपनी खातिर तुमने अपने-आप को खोया है,
खोने के बाद मुझे ढूँढ लाने को कहते हो,
कभी साथ देते हो तो कभी हाथ छुड़ाते हो,
जाने कौन सी मजबूरी है यह की उम हर बात छुपाते हो .
कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले, दिल जो बदला तो फसाना बदला
रस्मे दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तो की तिजारत ना हुई
दूर से था वो कई चेहरो मे, पास से कोई भी वैसा ना लगा
बे-वफाइ भी उसी का था चलन, फिर किसीसे शिकायत ना हुई
वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह, राह मे कोई खिलोना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गयी, दुश्मनी मे भी अदावत ना हुई
न था इश्क हमसे तो कोई बात नहीं थी
यूँ मेरे दिल को न तडपते तो अच्छा होता
हमसे इकरार न करते तो कोई बात नहीं थी
इनकार-इ-मोहब्बत न जताते तो अच्छा होता
माना के मोहब्बत के तेरे हम न थे काबिल
देखकर हमको न मुस्कुराते तो अच्छा होता
था ख्वाब मेरा ये तो कोई बात नहीं थी
आकर ख्वाबो में न जागते तो अच्छा होता
न होता मंजूर दुनिया को कोई बात नहीं थी
हमें यूँ न मजबूर बनाते तो अच्छा होता