सत्यवान और सावित्री के प्रेम की कहानी Satyawan aur Savitri ke prem ki kahani

एक दिन किसी घने जंगल में सावित्री की भेंट साम्राज्य खो चुके एक वृद्ध और
अंधे राजा से हुई। एक छोटी-सी कुटिया में राजा-रानी और उनका युवा पुत्र
सत्यवान जीवन व्यतीत कर रहे थे। राजकुमार लकड़ी काटकर उसे हाट में बेचता और
माता-पिता के लिए भोजन जुटाता था। सावित्री को ऐसे ही वर की तलाश थी,
लेकिन उनके पिता गरीब राजकुमार से बेटी की शादी के पक्ष में तैयार न हुए।
राजा को जब पता चला कि सावित्री की शादी जिससे भी होगी वह राजकुमार एक साल
बाद मर जाएगा और सावित्री भी सत्यवान से विवाह के फैसले पर अडिग रहीं तो
अंतत: भारी मन से राजा ने हामी भर दी। विवाह के बाद सावित्री पति की
कुटिया में रहने लगीं।
वर्ष के अंतिम दिन सावित्री जल्दी उठीं, सत्यवान से साथ जंगल जाने की
प्रार्थना की। काफी देर तक सत्यवान ने इंकार किया लेकिन सावित्री नहीं
मानी और सत्यवान के साथ जंगल में चली गई. दोपहर के समय सत्यवान को कुछ थकान
महसूस हुई और उसे अपनी आँखों के आगे अँधेरा दिखने लगा तो सत्यवान ने
सावित्री को अपना हाल सुनाया. सावित्री तुरंत समझ गई और सत्यवान का सिर
अपनी गोद में रख लिया।
जब यमराज पतिव्रता सावित्री के गोद में लेटे सत्यवान के प्राण ना ले सकें
तो यमराज प्रकट हुए और सावित्री से सत्यवान को ले जाने की बात कही।
सावित्री ने यमराज से विनती की कि वह उन्हें सत्यवान के जीवन का वरदान दे
या पति के साथ मृत्यु वरण करने दें। यमराज इसके लिए तैयार न हुए। सावित्री
की जिद पर उन्होंने सत्यवान के जीवन के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को
कहा। सावित्री ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद मांगा।
यमराज ने वरदान दिया और सत्यवान के प्राण लेकर चलने लगे, तभी सावित्री ने
कहा - महाराज मैं एक पतिवर्ता औरत हूँ और मुझे बिना पति पुत्र कैसे हो सकता
है लेकिन यदि आपके वरदान से यह हो भी गया तो समाज इसे कैसे स्वीकार करेगा.
लोग मेरे बारे में क्या - क्या कहेंगे. यह सुनकर यमराज अचंभित हुए और अंत
में यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए और अटल निश्चय वाली सावित्री के
प्रेम की जीत हुई, उन्होंने पति का जीवन वापस पा लिया।